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काट मुवीर परम गुपदाय । विमल जिनेग जहाँ गिवपाय । मन वच दरश कर जो कोय । कोटि उपामतनो फन होय ।।१२।। कूट स्वयम मुभग मु नाम । गये अनन्त अमरपुरधाम ।। यही कट को दग्शन करे । कोटि उपामतनो फल घरे ॥१३॥ है सुदत्तवर कूट महान । जहंत धर्मनाय निरवान । परम विगाल ट है मोय । कोटि उपाम दरगफन होय ॥१४|| ाट प्रभाग परम शुभ रह्यो । गातिनाथ जहते शिव लह्यो।
टतनो दग्गन है मोय । एक कोडि प्रोपध फल होय ।।१५।। परमजानघर है गुभाट । गिवपुर कुथु गये अबछूट । जाको पूजे जे कर जाडि फन उपास कह्यो इक कोडि । १६।। नाट कूट महाशुभ जान । जहंत गिवपुर पर भगवान । दग्गन कर कूट को जोय । छयानवकोटि वाम फल होय ॥१७॥ सबनकूट मरिलजिनराज । जहत मोक्ष भये शुभ काज । कट दरमफल कयो जिनेग । एक कोडि प्रोपध शुभ वेश ॥१८॥ निर्जर कूट फह्यो मुग्मदाय । मुनिमुव्रत जहंते शिव जाय। नाटतनो प्रव दरशन सोय । एक कोटि प्रोपच फल होय ॥१६॥ लूट मिनधरतै नमि मुक्ति । पूजत पाय सरासर मुक्ति । कूटतनो फल है सुखकन्द । कोटि उपास कह्यो जिनचन्द ।।२०॥ श्रीप्रभु पार्श्वनाय जिनराज । चहंगतिते छूटे महागज।। सुवरणभद्र कट को नाम । तासो माक्ष गये सुखधाम ॥२१॥ तीनलोक हितकरण अनूप । वदित ताहि मुरासुर भूप । चितामणि सुरवृक्ष समान । ऋद्वि-सिद्धि मगल सुखदान ॥२२॥ नवनिधि चित्रावेल' समान । जातै सुक्ख अनूपम जान । पारम और कामसुर धेनु । नानाविध प्रानन्द को देन ।।२३।। व्याधिविकार जाहिं सब भाज । मन-चीते पूरे ह काज । भवदधि-रोग विनाशक सोय । श्रीपधि जगमे और न कोय ॥२४॥ निरमल परम थान उत्कृष्ट । वन्दत पाप भजे अरु दुष्ट । जो नर ध्यावत पुण्य कमाय । जगगावत सब कर्म नशाय ॥२५॥