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प्रय जयमाला । लोलतरङ्ग छन्दमनमोहन तीरथ शुभ जानो, पावन परम सुक्षेत्र प्रमानो। उन्नत शिम्बर अनूपम नोहे, देखत ताहि सुरासुर मोहै। दोहा-तीरथ परम सुहावनो शिखर समेद विशाल । कहत अल्पबुधि उक्तियो, सुग्वदायक जयमाल ।
चौपाई १५ मात्रा-- सिद्धक्षेत्र तीरय मुखदाई । वन्दा पाप दूर हो जाई । शिखरशीप पर कूट मनोग्य । महे वीस प्रति शोभा योग्य ॥१॥ प्रथम सिद्धवरकाट सुचान । अजितनाथ को मुक्ति सुथान । कूटतनो दरशन फल एह । कोटि वतीस उपास गिनेह ॥२॥ दूजो धवलयूट है नाम । सम्भवप्रभु जहंत शिवधाम । दरमकोटि प्रोपवफल गान । लाग्य वियालिस को वखान ॥३॥ प्रानन्दकाट महामुपदाय । जहंत अभिनन्दन शिव जाय।। कूटतनो दरशन इमि जान । लास उपास तणो फल मान ॥४॥ अविचल कट महासुग्व वैग । मुक्ति गये जह सुमति जिनेश । कूट भाव धरि पूजे कोय । एक कोटि प्रोषध फल होय ॥५॥ मोहन कुट मनोहर जान । पद्मप्रभ जहते निर्वान । कूट पूज फल लेहु सुजान । कोटि उपास कह्यो भगवान ।।६।। मनमोहन है काट प्रभाम । मुक्ति गए जहं नाथ सुपास। पूर्ज कूट महाफल होय । कोटि वतीम उपास जु सोय ॥७॥ चन्द्रप्रभ का मुक्ति मुघाम । परम विशाल ललितघट नाम । कूटतनो दरशन फन जान | प्रोपव सोलह लाख बखान ।।८।। सुप्रभ कूट महासुखदाय। जस्तै पुष्पदन्त शिवपाय।। पूजो कट महाफल लेव । कोटि उपास कह्यो जिनदेव ।।।। श्रीविद्य तवर कट महान । मोक्ष गए शीतल धरि ध्यान । पूजे विविध जोग कर कोय । कोडि उपास तनो फल होय ॥१०॥ सकुल कूट महाशुभ जान । श्रीश्रेयास गये शिवथान । कूटतनो दर्शन फल सुन्यो । जोडि उपास जिनेश्वर भन्यो ॥११॥