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केसर आदि कपूर सुगंध मिलाइये । पूजों शिखर सम्मेद सु मन वच काय ज ।
नरकादिक दुरव टरै अचल पद पाय जू ।। ॐ ह्री श्रीसम्मेद शिखर सिद्धक्षेत्रेभ्यो समारतापविनाशनाय चदन ।
धवल स उज्ज्वल तन्दुल खासे धोयके ।
हेम वरनके थार भरौं शुचि होयके ।।पूर्जी ।। ॐ ह्री श्रीसम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्रेभ्यो अक्षयपद प्राप्ताय अक्षत ।।
फूल सुगन्ध सुल्याय हरष सो प्रान चढायो।
रोग शोक मिट जाय मदन सब दूर पलायो ।पूजी.। ॐ ह्री श्रीमम्मेदशिखर सिद्वक्षेत्रेभ्यो कामवाणविघ्वशनाय पुष्प ।
पदस के नैवेद्य कनक थारी भर ल्यायो।
क्षुधा निवारण हेतु सु पूजौं मन हरषायो ।पूजौं। ॐ ह्री श्रीसम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्रेभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् ।
लेकर मरिणमय दीप सुज्योति उद्योत हो।
पूजत होत स्वज्ञान मोह तम नाश हो ।पूजो०॥ ॐ ह्री श्रीमम्मेदगिलर सिद्धक्षेत्रेभ्यो मोहावकारविनाशनाय दीप ।
दश विधि धूप अनूप अग्नि मे खेवहू ।।
अष्ट कर्म को नाश होत सुख लेवहूँ ।।पूजी०।। ॐ ह्री श्रीसम्मेदगिरवर मिक्षेत्रेभ्यो अष्टकर्म विध्वसनाय धूप० ॥
केला लोग सुपारी श्रीफल ल्याइये । __ फल चढाय मनवाछित फल सु पाइये ।।पूर्जी०।। ॐ ह्री श्रीसम्मेद शिखर मिद्वक्षेत्रेभ्यो मोक्षफनप्राप्नाय फन० ॥
जल गन्धाक्षत फूल मु नेवज लीजिये ।
दीप धूप फल लेकर अर्घ चढाइये ॥ पूजी० ।। ॐ ह्री श्रीमम्मेदशियर मिक्षेत्रेम्यो अनयंपदप्राप्तये अध्य॑म ।।