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१४२ ] ॐ ह्री श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अध्यं ।
पञ्चकल्याणक। शुभप्रानत वन विहाये, वामा माता उर पाये । वैशाखतनी दुतिकारी, हम पूजे विघ्न निवारी ॥१॥ ॐ ह्री वैशाखकृष्णाद्वितीयाया गर्भमङ्गलमण्डिताय श्रीपार्श्वनाथ जिने. न्द्राय अर्घ्य । जनमे त्रिभुवन सुखदाता, एकादशि पौष विख्याता । श्यामातन अद्भुत गज, रविकोटिक तेजसु लाजै ॥२॥ ॐ ह्री पौषकृष्णकादश्या तपोमगलमडिताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्रायाऱ्या कलि पौष इकादशि आई, तब बारह भावन भाई । अपने कर लोच सु कोना, हम पूजे चरण जजोना ।।३।। ॐ ह्री पौषकृष्णकादश्यातगोमगलमडिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्रायाध्य कलि चैत चतुर्थी प्राई, प्रभु केवलज्ञान उपाई। तब प्रभु उपदेश जु फीना, भविजोवनको सुख दोना ॥४॥ ॐ ह्री चैत्रकृष्णाचतुर्थीदिने केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्रायाय सित सातै सावन प्राई, शिवनारि वरी जिनराई ।। सम्मेदाचल हरि माना, हम पूजे मोक्ष कल्याना ॥५॥ ॐ ह्री श्रावणशुक्लासप्तम्या मोक्षमंगलमडिताय श्रीपार्श्वनाथायाध्य ।
जयमाला।
पारसनाथ जिनेन्द्रतने वच, पौनसखी जरतें सुन पाये। फरयो सरधान लह्यो पदप्रान, भये पद्मावति शेष कहाये ॥ नाम प्रताप टरै संताप सु, भव्यन को शिवशरम दिखाये । हे विश्वसेनके नन्द भले, गुणगावत हैं तुमरे हरखाये ॥१॥