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[ १४१ ॐ ह्री श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल० । चन्दनादि केशरादि स्वच्छ गन्ध लीजिये। आप चणं चर्च मोहतापको हनीजिये ॥ पार्श्व० ।।२।। ॐ ह्री श्रीपार्श्वनाथ-जिनेन्द्राय भवतापविनाशनाय चन्दन नि० । फेन चन्दके समान अक्षतान् लाइक । चर्णके समीप सार पुञ्जको नसाइये ॥ पार्श्व० ॥३॥ ॐ ह्री श्रीपार्श्वनाथ-जिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षत । केवड़ा गुलाब और केतकी चुनाइये । धार चर्णके समीप कामको नसाइये ॥ पाव० ॥४॥ ॐ ह्री श्रीपार्श्वनाथ-जिनेन्द्राय कामबाणविध्वसनाय पुष्प । घेवरादि बावरादि मिष्ट सद्य में सने।। आप चर्ण प्रर्चते क्षुधादि रोग को हने ॥ पार्श्व० ॥५॥ ॐ ह्री श्रीपार्श्वनाथ-जिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य । लाय रत्नदीप को सनेहपूर के भरूं । वातिका कपूर वारि मोह ध्वातईं हरू।पार्श्व० ॥६॥ ॐ ह्री श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं । धूपगन्ध लेयक सु अग्नि संग जारिये। तासु धूपके सुसंग प्रष्ट कर्म वारिये । पाश्व० ॥७॥ ॐ ह्री श्रीपार्श्वनाथ-जिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं । खारिकादि चिरभटादि रत्नथाल मे भरू। हर्षधारिक जजू सुमोक्ष सुक्ख को वरू।पार्श्व० ॥६॥ ॐ ह्री श्रीपार्श्वनाथ-जिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फल । नीरगन्ध अक्षतान पुष्प चर लीजिये। दीप धूप श्रीफलादि अर्घतै जजीजिये ।। पार्श्व० ॥॥