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________________ १४० } घत्ता-श्री नेमिकुमार जितमदमार, शीलागारं, सुखकार । भवभयहरतार शिवकरतार, दातार धर्माधार ।१५॥ ॐ ह्री श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय महाध्य निर्वपामीति स्वाहा। मालिनी-सुख, धन, यश, सिद्धी पुत्र पौत्रादि वृद्धी। सकल मनसि सिद्धी होति है ताहि ऋद्धी ।। जजत हर्षधारी नेमिको जो अगारी । अनुक्रम परि जारी सो वर मोक्षनारी ।।१६।। इत्याशीर्वाद श्री पार्श्वनाथ पूजा गीता छन्द । वर स्वर्ग प्रानतको विहाय, सुमात वामा सुत भये । अश्वसेनके सुत पाव जिनवर, चरण जिनके सुर नये ।। नवहाथ उन्नत तन विराज, उरग लच्छन पद लसै । थापू तुम्हे जिन प्राय तिष्ठो, करम मेरे सब नसै ॥१॥ ॐ ह्री श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्र । अत्र अवतर अवतर, सवीपट् । ॐ ह्री श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्र । अत्र तिष्ठ तिष्ठ । ठ ठ ।। ॐ ह्री श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्र । अत्र मम सन्निहितो भव भव वपट् । अथाष्टक नाराच छन्द ।। क्षीरसोम के समान अम्बुसार लाइये । हेमपात्र धारकै सु आपको चढाइये ॥ पार्श्वनाथ देव मेव आपको करूं सदा । दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा ॥१॥
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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