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[ १३७ दाता मोक्ष के श्री नेमिनाथ जिनराय दाता० ॥ टेक ॥। निगमनदी कुश' प्रासुक लीनो, कंचन भृंग भराय । मनवचतनत घार देत ही, सकल कलङ्क नसाय | दाता मोक्ष के श्री नेमिनाथ जिनराय, दाता० ॥१॥ * ह्रीं श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय जन्ममृत्युविनाशनाय जलम् निर्व० । हरिचन्दनजुत कदली नन्दन कुंकुम संघ घसाय । विघ्नतापनाशनके कारन जज तिहारे पांय || दा. || चन्दन |२| पुण्य राशि तुम यश सम उज्ज्वल, तन्दुल शुद्ध मंगाय । प्रखयसो भोगनके कारण, पुञ्जधरो गुरागाय दा । श्रक्षतान् पुंडरीक तृराहमको प्रादिक, सुमन सुगन्धित लाय । वर्णकमन्मथ' भञ्जनकारन, जजहु चरण लवलाय | दा. 1 पुष्प | ४ | घेवर वावर खाजे साजे, ताजे तुरित मगाय ।
क्षुधा वेदनी नाश कररणको, जजह चररण उमगाय |दा. | नवेद्यं । कनक दीप नवनीत' पूरकर, उज्ज्वल जोति जगाय । तिमिर मोहनाशक तुमको लखि, जजहु चरन हुलसायादा, दीपं दशविध गन्ध मंगाय मनोहर, गुञ्जत लिगरण श्राय । दशोंबध जारन के कारन, खेवीं तुम ढिग लाय 11 दा. | धूप ॥७ सुरसवररण रसना मनभावन, पावन फल सु मंगाय । मोक्ष - महाफल काररण पूजो, हे जिनवर तुम पाय | दा. फलं । जल फल श्रादि साज शुचि लोने, प्राठो दरब मिलाय । अष्टम-क्षिति के राज करनकों, जजों प्रंग वसुनाय | दा. | श्रर्घ्य। ६
१ जल । २. घमण्डी कामदेव | ३ घृत । ४ मुक्ति ।