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छन्द त्रिभगी ।
क्षीरोदधिनीर, उज्ज्वल छोरं, छान सुचीरं, भरि भारी । प्रति मधुर लखाबन, परमसुपावन, तृषाबुझावन, गुरणभारी । वसुकोटि सु छप्पन लाख सताणव, सहस चारशत इक्यासी । जिनगेह प्रकीर्तिम तिहूं जगभीतर, पूजत पद ले अविनाशी ।
ॐ ह्री त्रैलोक्यसम्बन्ध्यष्टकोटि षट्पञ्चाशल्लक्ष सप्तनवतिसहस्रचतु शतैकाशीति अकृत्रिम जिनचैत्यालयेभ्यो जल निर्वपामीति० ॥ १ ॥ मलयागिर पावन, चंदन बावन, तापबुझावन, घसि लीनो । धरि कनककटोरी, द्व कर जोरी, तुमपदश्रोरी, चित दीनो। वसु.
ॐ ह्री त्रैलोक्यसम्बन्ध्यष्टकोटि षट्पञ्चाशल्लक्ष- सप्तनवतिसहस्रचतु शतैकाशीति अकृत्रिम जिन चैत्यालयेभ्यो चन्दन निर्व० ॥२॥ बहुभाति अनोखे तंदुल धोखे, लखि निरदोखे, हम लीने । घरि कंचनथाली, तुमगुणमाली, पु जविशाली, करदीने । वसु.
ॐ ह्री त्रैलोक्यसम्बन्ध्यष्टकोटि षट्पंचाशल्लक्ष सप्तनवतिसहस्रचतु शतैकाशीति अकृत्रिम जिनचैत्यालयेभ्यो अक्षतान् निर्व० ||३|| शुभ पुष्पसुजाती है बहू भांती, पलि लिपटाती, लेय वरं । घरि कनक-रकेबी करगह लेवी, तुम पदजुगकी, भेटघर । वसु.
ॐ ह्री त्रैलोक्यसम्बन्ध्यष्टकोटि षट्पचाशल्लक्ष-सप्तनवतिसहस्रचतु शर्तकाशीति-प्रकृत्रिम जिनचैत्यालयेभ्य पुष्प निर्व० ॥४॥ खुरमा गिदौड़ा, बरफी पेडा, घेवर मोदक, भरि थारी । विधिपूर्वक कोने, घृतमय भीने, खडमें लीने, सुखकारी ॥ वसु.
ॐ ह्री त्रैलोक्यसम्बन्ध्यष्टकोटि षट्पंचाशल्लक्ष-सप्तनवतिसहस्रचतु शर्तकाशीति अकृत्रिम जिन चैत्यालयेभ्य नैवेद्य ं निर्व० ||५||