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७८ : जेनसाहित्यका इतिहास
७. सातवें उद्देशमें १५३ गाथाएँ हैं। इसमें विदेह क्षेत्रका वर्णन है। यह निषध और नील पर्वतके मध्यमें स्थित है। इसके बीचमें सुमेरु पर्वत और उसके चारों ओर चार दिग्गज पर्वत हैं। इनके कारण विदेह पूर्व विदेह और अपरविदेहके रूपमें दो भागोमें विभाजित है। बीचमें सीता और सीतोदा महानदियोंके कारण प्रत्येकके दो भाग हो गये हैं। इन चारों भागोंमेंसे प्रत्येक भागमें ४ वक्षार पर्वत और तीन विभंग नदियाँ हैं। इनके कारण प्रत्येक भाग के भी आठ-आठ भाग हो गये हैं। ये ८४४-३२ भाग ३२ विदेह कहे जाते हैं। प्रत्येक विदेह एक-एक चक्रवर्तीके अधीन रहता है अतः चक्रवर्तीकी विभूति तथा विजय यात्राका भी वर्णन किया गया है।
८. आठवें उद्देशमें १९८ गाथाएं हैं । इसमें पूर्व विदेहका वर्णन है । ९. नौवें उद्देशमें १९७ गाथाएं हैं । इसमें अपर विदेहका वर्णन है ।
१०. दसवें उद्देशमें १०२ गाथाएं हैं। इसमें लवण समुद्रका वर्णन है। तदनुसार लवण समुद्रकी गहराई व्यास, पातालोंकी अवस्थिति, जलकी हानि वृद्धि, अन्तर्वीप तथा अन्तद्वीपोंमें बसने वाले मनुष्योंका वर्णन है ।
११. ग्यारहवें उद्देशमें ३६५ गाथाएं हैं। इसमें धातकी खण्ड द्वीपसे लेकर आगेके द्वीप समुद्रोंका तथा अधोलोक ( नारकलोक ) और ऊर्ध्वलोक ( देवलोक ) का वर्णन है। प्रारम्भकी ८२ गाथाओंमें तो केवल धातकी खण्ड और पुष्कराध द्वीपका वर्णन है। आगे शेष द्वीप समुद्रोंमेंसे आदि और अन्तके सोलह सोलह द्वीपों और समुद्रोंका नाम मात्र गिनाया है तथा कुछ विशेष बातोंका कथन कर दिया है । गाथा ९६ से १०३ तक रज्जूकी प्रन्थिका जो प्रक्षेपण किया गया है वह अस्पष्ट है पता नहीं ग्रन्थकारने इसे कहाँसे लिया है । अधोलोकका वर्णन प्रारम्भ करनेसे पूर्व गाथा १०६-१११ में पुनः लोकका वर्णन किया है । आगे नारकलोक और देवलोकका वर्णन है।
१२. बारहवें उद्देशमें ११३ गाथाएं हैं। इसमें ज्योतिर्लोकका वर्णन है। किन्तु वह वर्णन चन्द्रमाके विमानसे प्रारम्भ होता है। और उसीके कथनकी यहाँ प्रधानता है। प्रारम्भकी साठ पैंसठ गाथाओंमें चन्द्रको लेकर ही कथन है। ऐसा अन्यत्र नहीं पाया जाता । सिद्धान्तके अनुसार चन्द्र इन्द्र हैं शायद इसीसे उसके कथनको ही मुख्यता दी गई है। आगे शेष गाथाओंसे सभी ज्योतिषी देवोंका साधारण कथन कर दिया है। बहुत सा आवश्यक कथन नहीं किया गया है।
१३. तेरहवें समुद्देशमें १७६ गाथाएँ हैं । सर्व प्रथम कालके व्यवहार और परमार्थ रूप दो भेदोंको बतलाकर समय आवलि आदि व्यवहार कालके भेदोंका