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३४ : जेनसाहित्यका इतिहास
ये ग्रन्थ ति०प०से कई सौ वर्ष प्राचीन हैं। अतः ति०प०से उनमें लिये जाने की तो सम्भावना ही नहीं की जा सकती।
भगवती आराधना शिवार्य रचित एक प्राचीन ग्रन्थ है। उसकी भी कई गाथाएँ ति० ५० में वर्तमान है। ति० प० में एक गाथा इस प्रकार है
वेढेदि विसयहेतुं कलत्तपासेहिं दुविमोचेहिं ।
कोसेण कोसकारो व दुम्मदी मोहपासेसु ॥६२७॥-अ० ४ । ___ यह भ० आराधनाकी ९१९ वीं गाथा है । अन्तिम चरणमें 'दुम्मदी णिच्च अप्पाणं' पाठ भेद है। इसी तरह ति० ५० अ० ३ में गाथा न० ६१७-६१८, भ० आराधनामें उसी क्रमसे वर्तमान गाथा न० १५८२-८३ हैं । भगवतीकी वैराग्य परक अन्य भी गाथाएँ ति० प० में तीर्थङ्करोंके वैराग्यके प्रकरणमें वर्तमान हैं।
ति० प० के नौवे अधिकारमें, जिसमें अधिकांश गाथा संगृहीत हैं और उनका कोई क्रम भी समुचित प्रतीत नहीं होता, तीन गाथाएँ पुण्यकी बुराईमें दी गई हैं, जो इस प्रकार हैं
पुण्णेण होई विहओ विहवेण मओ मएण मइमोहो । मदमोहेण य पावं तह्मा पुण्णो वि वज्जेज्जो ॥५२॥ परमट्ट बाहिरा जे ते अण्णाणेण पुण्णमिच्छति । संसारगमणहेदुं विमोक्खहेदु अयाणंता ॥५३॥ णहु मण्णदि जो एवं णत्थि विसेसोत्ति पुण्णपावाणं ।
हिंडदि घोरमपारं संसारं मोहसंछण्णो ॥५४॥ इनमेंसे पहली गाथा परमात्म प्रकाशकी २।६० वीं गाथा है। इसके अन्तिम चरणमें पाठ भेद हैं। उसमें 'तमा पुण्णोवि वज्जेजो के स्थानमें 'ता पुण्णं अह्म मा होउ' पाठ है । अभिप्रायमें कोई अन्तर नहीं है। दूसरी गाथा समय प्राभतकी १५४ वीं गाथा है और तीसरी गाथा प्रवचनसारकी १७७ वीं गाथा है। तीनों गाथाओंका परस्परमें कोई सम्बन्ध नहीं है। अतः यह निश्चित है कि वे उन ग्रन्थोंसे संगृहीत की गई हैं । जहाँ तक समयसार और प्रवचनसारकी बात है वहाँ तक तो कोई विशेष बात नहीं है क्योंकि इन दोनों ग्रन्थोंकी बहुत सी गाथाएँ ति० प० में संगृहीत हैं और ये दोनों ग्रन्थ भी ति० ५० से बहुत प्राचीन हैं । केन्तु परमात्म प्रकाशकी गाथाका तिलोयपण्णत्तिमें पाया जाना अवश्य ही विचारणीय है क्योंकि डा० ए० एन० उपाध्येने परमात्मप्रकाशकी अपनी प्रस्तावना। उसके कर्ता जोइन्दुका समय ईसाकी छठी शताब्दी निर्धारित किया है और