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________________ भूगोल-खगोल विषयक साहित्य : ३१ फिर साठ वर्ष वसुमित्र' अग्निमित्र का, एक सौ वर्ष गन्धर्व का और ४० वर्ष नर वाहन का राज्य रहा। फिर भ्रत्यान्ध्रों का काल २४२ वर्ष रहा, फिर गुप्त वंश का राज्य २३१ वर्ष रहा । फिर चतुमुखकल्कि हुआ,। उसने ४२ वर्ष राज्य किया। इस तरह ६० + १५५ + ४० + ३० + ६० + १०० + ४० + २४२ + २३१ + ४२ = १००० वर्ष हुए। (४।१५०५-९)। आगे कल्कि के अत्याचारों का वर्णन है । अन्त में लिखा है कि इसी तरह प्रत्येक एक एक हजार वर्ष में एक एक कल्कि और प्रत्येक पाँच सौ वर्षों में एक एक उपकल्कि होगा ( ४।१५०५-९) । कल्कि एक ऐतिहासिक राजा हआ है। उसके विषय में स्व. श्री जायसवाल ने एक विस्तृत लेख लिखा था । इसी तरह स्व० डा० काशीनाथ बापूजी पाठक ने भी अपने एक लेख में कल्कि को ऐतिहासिक राजा बतलाया था। किन्तु जायसवाल जी के मत से मालवाधिपति विष्णु यशोधर्मा ही कल्कि है और पाठक जी मिहिर कुल को कल्कि मानते थे । अस्तु, २१वें अन्तिम कल्कि के अत्याचारों के विरोध स्वरूप अन्तिम मुनि आयिका श्रावक और श्राविका समाधि पूर्वक मरण को प्राप्त होते हैं । उसी दिन एक असुर के द्वारा कल्कि मार डाला जाता है और धर्म तथा राजाके साथ अग्नि का भी लोप हो जाता है। इस घटना के तीन वर्ष साढ़े आठ मास पश्चात् अतिदुषमा नामक छठा काल आता है। उस काल में वस्त्र, वृक्ष, मकान वगैरह नष्ट हो जाते हैं। मनुष्यों का आचरण पशुवत् हो जाता है। इस काल का प्रमाण इक्कीस हजार वर्ष है। उसमें उनचास दिन शेष रहने पर प्रलय काल आता है। भयंकर वर्षा और उत्पातों से पर्वत तक चूर्ण चूर्ण हो जाते हैं । उनचास दिन बीतने पर अवसर्पिणी समाप्त हो जाता है और उसर्पिणी काल आरम्भ होता है। यह दुःख से सुख की और बढ़ता है। इसके अन्तर्गत छ काल हैं-अति दुषमा, दुषमा, दुषम सुषमा, सुषम दुषमा, सुषमा, सुषम १. विचार श्रेणी, तीत्थोगालीपइन्ना और तीर्थोद्धार प्रकरण में वसुमित्र अग्नि मित्र के बदले बलमित्र भानमित्र, गन्धर्व के स्थान में गर्दभिल्ल का नाम है। हरिवंश पुराण में गर्दभिल्लको गर्दभ मानकर उसके पर्यायवाची शब्द रासभ का प्रयोग किया है। गर्दभिल्ल एक राजवंश था। स्व० जायसवाल ने खारवेल के राजवंश से उसकी एकता सिद्ध की है। (बि. उ० रि० सो० जर्नल का सितम्बर १९३० का अंक)। २. ‘कल्कि अवतार की ऐतिहासिकता' और गुप्त राजाओं का काल, 'मिहिरकुल और कल्कि' शीर्षक लेख-जै० हि०, भा० १३, अं० १२ ।
SR No.010295
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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