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तत्त्वार्थविषयक टीक-साहित्य : ३१५ तरहका कोई वाक्य नहीं मिलता। एक ही आपत्ति इसमें हो सकती है। अकलंकदेवने समाधानमें 'कालश्च' सूत्रका उल्लेख किया है, किन्तु भाष्य मान्य सूत्रपाठमें 'कालश्चेत्येके' सूत्र है। जिससे प्रकट होता है कि भाष्यमान्य सूत्रपाठके कर्ताको काल द्रव्य ही मान्य नहीं है । उसने केवल एक आचार्यके मतका उल्लेख मात्र किया है । भाष्यके टीकाकार' सिद्धसेनगणिने भी इस बातको स्वीकार किया है। अतः अकलंकदेवकृत समाधान भाष्यमान्य सूत्रपाठ से संगत नहीं बैठता ।
सूत्र ५-१ की व्याख्यामें तत्त्वार्थवातिकमें उक्त शंका से मिलती हुई किन्तु उससे विपरीत एक और शंका है जो इस प्रकार है
शंका-काल भी एक अजीव पदार्थ है । इसीसे भाष्यमें बहुत बार 'छद्रव्य हैं' ऐसा कहा है । अतः उसको भी गिनना चाहिये।
समाधान-कालका लक्षण आगे कहेंगे।'
यहाँ यह प्रश्न है कि यह भाष्य कौनसा है जिसमें बहुत बार छ द्रव्य बतलाये हैं। तत्त्वार्थ भाष्य में तो बहुत बार क्या, एक बार भी 'षड्द्रव्याणि' लिखा नहीं मिलता । जैसा हम ऊपर लिख आये हैं, वीरसेन स्वामीने तत्त्वार्थ वार्तिक को भी 'तत्त्वार्थ भाष्य' कहा है। अतः "भाष्य' शब्दसे अकलंकदेवने तत्त्वार्थवार्तिकोंकी व्याख्याका 'भाष्य' शब्द से उल्लेख किया हो ऐसी आशङ्काकी जा सकती है। किन्तु प्रथम तो अकलंकदेवने अपने वार्तिकोंके व्याख्यानको भाष्य शब्द से कहीं भी नहीं कहा, दूसरे द्रव्योंका कथन तत्त्वार्थसूत्रके पांचवें अध्यायमें है। और उसके पहले सूत्र की व्याख्याने ही यह लिखना कि 'भाष्यमें बहुतबार छ 'द्रव्य कहे हैं' असंगत है। फिर कालद्रव्यकी गणना करनेकी बात तत्त्वार्थ सूत्र के पांचवें अध्यायके प्रथमसूत्रको लक्ष्य करके कही गई है क्योंकि उसमें काल द्रव्यको नहीं गिनाया है। अतः काल द्रव्यके पक्ष में प्रमाणरूपसे उसपर रचे जाते हुए वार्तिक ग्रन्थको ही भाष्यके नामसे उपस्थित किया जाना किसी भी तरह संभव नहीं है। अतः वह भाष्य कौन सा है जिसमें बहुबार 'षड्द्रव्याणि' पद आया है, यह अन्वेषणीय है।
१. 'कालश्चकीयमतेन द्रव्यमिति वक्ष्यते । वाचकमुख्यस्य पञ्चवेति'-सि०
ग० टी०, भा० १, पृ० ३२१ । २. 'स्यादेतत् कालोऽपि कश्चिदजीवपदार्थोऽस्ति । अतश्चास्ति यभाष्ये बह
कृत्वः 'षड्द्रव्याणि' इत्युक्तम् । अतोऽस्योपसंख्यानं कर्तव्यमिति । तन्न; किं कारणम् ? वक्ष्यमाण लक्षणत्वात् । वक्ष्यते हि तस्य लक्षणमुपरिष्टात् ।'