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तत्त्वार्थविपयक टीका - साहित्य : ३०७
११. सूत्र ५ - २ के अन्तर्गत वैशेषिक दर्शनके 'द्रव्यत्वयोगात् द्रव्यम्' की आलोचना खूब विस्तार से की है । और अन्तमें 'गुणसन्द्रावो द्रव्यम्' की भी समीक्षा की है ।
१२. सूत्र ५-७ में आत्माको व्यापक अत एव निष्क्रिय माननेवाले वैशेषिकके 'आत्माके संयोग और प्रयत्न गुण से हाथ में क्रिया होती हैं इस मतका खण्डन किया गया है ।
१३. सूत्र ५-१९ के अन्तर्गत शब्दको मूर्तिक सिद्ध करके वैशेषिक दर्शन, बौद्ध दर्शन और सांख्य दर्शनमें माने गये मनके स्वरूपका निराकरण किया है । वैशेषिक मनको एक स्वतंत्र द्रव्य तथा अणुरूप मानता है । बौद्ध दर्शन में अनन्तर अतीत विज्ञानको मन कहा है और सांख्य दर्शनमें मन प्रधानका विकार है । किन्तु जैन दर्शनमें मनको स्वतंत्र द्रव्य नहीं माना है और न नित्य अणुरूप ही माना है । सर्वार्थसिद्धिमें केवल वैशेषिकोंके द्वारा माने गये मनके स्वरूपकी समीक्षा है ।
१४. सूत्र ५-२२ के अन्तर्गत परिणामाभाववादियोंके मतका निराकरण करके योग सूत्र के व्यास भाष्य ( ३।१३ ) में जो परिणामका लक्षण कहा है, उसकी विस्तारसे समीक्षा की है । तथा क्रिया मात्र ही काल है, क्रिया से भिन्न कोई काल नामक पदार्थ नहीं है, ऐसा माननेवाले वादियोंका विस्तार से खण्डन करके काल द्रव्यकी सत्ता सिद्ध की है ।
१५. सूत्र ५-२४ के अन्तर्गत स्फोटवादका निराकरण किया है । स्फोटवादी मानते हैं कि ध्वनियाँ तो क्षणिक हैं, क्रमसे उत्पन्न होती हैं, अपने स्वरूपका प्रतिपादन करनेमें ही उनकी शक्ति क्षीण हो जाती है । अतः उनसे घटपट आदि पदार्थोंका बोध नहीं हो सकता । अतः एक स्फोटनामका तत्त्व है जो ध्वनिके द्वारा व्यक्त होकर पदार्थोंका ज्ञान कराता है । उसीका खण्डन अकलंकदेवने किया है ।
१६. सूत्र ८ - १ में अकलंकदेवने कौक्वल, काण्ठेविद्धि, कौशिक, हरि, श्मश्रुमान्, कपिल, रोमश, हारिताश्व, मुण्ड, आश्वलायन आदिको क्रियावादी बतलाया है, मरीचिकुमार, उलूक, कपिल, गार्ग्य, व्याघ्रभूति, वाद्वलि, माठर, मौद्गलायन वगैरहको अक्रियावादी दर्शन बतलाया है । साकल्य, वाष्कल, कुथुमि, सात्यमुनि, चारायण, कठ, माध्यन्दिन, मौद, पैप्पलाद, बादरायण, स्विष्ठिकृद्, एतिकायन, वसु और जैमिनि वगैरहके मतको अज्ञानवाद कहा है। तथा वशिष्ठ, पाराशर, जतुकर्ण, वाल्मीकि, रोमहर्षिणि, सत्यदत्त, व्यास, एलापुत्र, औपमन्यव, इन्द्रदत्त, अयः स्थूल आदिके मार्गोको वैनयिकवादी कहा है । इसपरसे यह शंकाकी गई है कि वादरायण, बसु और जैमिनि वगैरह तो वेदविहित क्रियाके अनु