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२८० : जैनसाहित्यका इतिहास
पूज्यपादको बतलाया है। उनमेंसे सिद्धभक्ति तो अपनी रचना शैली और निरूपणके आधारपर भी पूज्यपाद रचित ही प्रतीत होती है ।
सिद्धिप्रिय स्तोत्र - २६ पद्योंमें चौबीस तीर्थङ्करोंको स्तुति है जो निर्णयसागर प्रेस बम्बई से सप्तम गुच्छकमें प्रकाशित हो चुका है ।
सारसंग्रह—षट्खंण्डागमकी धवला टीकामें ( पु० ९, पृ० १६० ) । 'सारसंग्रहेऽप्युक्तं पूज्यपादैः' करके नयका लक्षण दिया है । यह लक्षण सर्वार्थसिद्धि टीकामें दिये गये नयके लक्षणसे कुछ मिलता हुआ है, अतः पूज्यपादका सारसंग्रह नामक भी कोई दार्शनिक ग्रन्थ रहा है, जो अनुपलब्ध है ।
उक्त ग्रन्थोंमेंसे वर्तमानमें जैनेन्द्रव्याकरण', 'सर्वार्थसिद्धि टीका, समाधितंत्र, इष्टोपदेश, दशभक्ति तथा सिद्धिप्रिय स्तोत्र उपलब्ध हैं और छपकर प्रकाशित हो चुके हैं । सर्वार्थ सिद्धि
तत्वार्थ सूत्रपर पूज्यपादने सर्वार्थ सिद्धि नामकी वृत्ति रची थी। इस वृत्तिको उसकी आद्य टीका कहे जानेका सौभाग्य प्राप्त है । यह वृत्ति यथा नाम तथा गुण है । वृत्तिके अन्तमें तीन पद्य हैं जो वृत्तिकारके द्वारा ही रचे गये हैं । उनमेंसे प्रथम पद्य में इस तत्वार्थ वृत्तिको 'जैनेन्द्र शासनवरामृतसारभूता' -
१. जैनेन्द्र व्याकरणका सूत्र पाठ १९१२ सन्में गांधी नाथारंगजी ग्रन्थमालासे प्रकाशित हुआ था ।
२. सर्वार्थसिद्धिका एक संस्करण सन् १९१७ में कोल्हापुरसे, दूसरा शोलापुर से, तीसरा हिन्दी अनुवादके साथ जैनग्रन्थ रत्नाकर बम्बईसे, चौथा हिन्दी अनुवादके साथ भारतीय ज्ञानपीठ काशीसे प्रकाशित हुआ है । इनके सिवाय भी एक दो संस्करण और प्रकाशित हुए हैं ।
३. समाधितंत्र निर्णयसागर प्रेससे प्रथम संस्कृतगुच्छकमें प्रकाशित हुआ था, संस्कृत टीका और हिन्दी अनुवादके साथ वीर सेवा मन्दिर सरसावासे प्रकाशित हुआ है ।
४. इष्टोपदेश संस्कृत टीकाके साथ तत्त्वानुशासनादि संग्रहके अन्तर्गत माणिक चन्द्रग्रन्थ माला बम्बईसे तथा हिन्दी अनुवादके साथ वीरसेवा मन्दिरसे प्रकाशित हुआ है ।
५. दशभक्ति संस्कृत टीका तथा मराठी अनुवादके साथ शोलापुरसे प्रकाशित हुआ है ।
६. 'स्वर्गापवर्गसुखमाप्तु मनो भिरायें जैनेन्द्रशासनवरामृतसारभूता । सर्वार्थसिद्धिरिति सद्भिरुपात्तनामा तत्त्वार्थवृत्तिरनिशं मनसा प्रधार्या ॥ १ ॥ तत्त्वार्थ वृत्तिमुदितां विदितार्थतत्त्वाः श्रृण्वन्ति ये परिपठन्ति च धर्मभक्तथा । हस्ते कृतं परमसिद्धिसुखामृतं ते मंर्त्यामरेश्वरसुखेषु किमस्ति वाच्यम् ॥ २॥