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छक्खंडागम • ७३
'जिसका केवलज्ञानरूपी सूर्यकी किरणोके समूहसे अज्ञानरूपी अन्धकार नष्ट हो गया है और नौ केवललव्धियोके प्रकट हो जानेसे जो 'परमात्मा' कहा जाता है उसको ज्ञान और दर्शन परकी सहायतासे नही होता, इसलिये उसे केवली कहते है और योगसे युक्त होनेके कारण सयोग कहते है ।'
इस तरह तेरहवें गुणस्थानका नाम सयोगकेवली है ।
१४ 'अजोगकेवली' ॥ २२ ॥ '
जिसके योग नही होता उसे अयोग कहते है । और योगरहित केवलज्ञानीको अयोगकेवली कहते हैं । कहा है
'जिन्होने शील के अट्ठारह हजार भेदोके स्वामित्वको प्राप्त कर लिया है । समस्त कर्मोंके आस्रवको रोक दिया है, और कर्मबन्धनसे मुक्त है तथा योगसे रहित केवली है उन्हें अयोगकेवली कहते है । यह चौदहवाँ गुणस्थान है । इसमे आनेके पश्चात् ही जीव ससारके बन्धनोसे मुक्त हो जाता है ।'
इस तरह ये चौदह गुणस्थान मोक्षके लिये सोपानके तुल्य है ।
इस तरह ओघसे चौदह गुणस्थानोका कथन करके सूत्रकारने आदेशसे ( विस्तार से ) गुणस्थानोका कथन किया है ।
जिस तरह चौदह गुणस्थान होते हैं उसी तरह चौदह मार्गंणास्थान होते है । जिनमें या जिनके द्वारा जीवोको खोजा जाता है उन्हे मार्गणा कहते है । इन मार्गणाओके द्वारा गुणस्थानोका कथन करनेको आदेश कथन कहा जाता है । जैसे१ गति चार है - नरकगति, तिर्यञ्चगति, मनुष्यगति और देवगति । नरकगतिमें प्रारम्भके चार गुणस्थान वाले ही जीव होते है । तिर्यञ्चगतिमे आदिके पाँच गुणस्थानवाले ही जीव होते है । मनुष्यगतिमे चौदहो गुणरथानवाले जीव होते है । देवगतिमें नरकगतिकी तरह चार ही गुणस्थानवाले जीव होते है ।
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२ इन्द्रिय पाच है— स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु, श्रोत्र । जिसके एक स्पर्शन ही इन्द्रिय होती हैं उन्हें एकेन्द्रिय जीव कहते है जैसे वनस्पति । जिसके स्पर्शन, रसना दो इन्द्रियाँ होती है उन्हें दो इन्द्रिय कहते हैं, जैसे लट । जिनके स्पर्शन, रसना, घ्राण तीन इन्द्रियाँ होती है उन्हें त्रि-इन्द्रिय कहते हैं, जैसे चिउटी । जिसके शुरू की चार इन्द्रियाँ होती है उन्हें चौइन्द्रिय जीव कहते हैं, जैसे भौंरा । और जिनके पाचो इन्द्रियाँ होती है उन्हे पञ्चेन्द्रिय कहते है, जैसे गाय, भैंस, मनुष्य । इनमें से पञ्चेन्द्रिय जीवके तो चौदह गुणस्थान हो सकते है आदिके पहला ही गुणस्थान होता है ।
किन्तु शेप एकेन्द्रिय
३ कायकी अपेक्षा जीवोके छै भेद है - पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्नि
१. पट्ख, पु० १, पृ० १९२ ।