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छक्खडागम • ६७
सभी सूत्र अल्पाक्षर है, असन्दिग्ध है और सारवान् है । अल्पाक्षरका यह अभिप्राय नहीं है कि सभी सूत्र छोटे है। प्रतिपाद्य विपयकं अनुसार उनकी रचना है। उदाहरणके लिये 'सव्वद्धा' जैसे छोटे सूत्र भी है और ऐसे भी है जो कई पंक्तियोमे समाप्त होते है।
संक्षेपमे इस ग्रथकी शैली आगामिक सूत्रशैली है । इस शैलीकी निम्नलिखित विशेपताएँ पायी जाती है१ विपयानुसार सूत्रोके शब्दोकी योजना । २ निरर्थक शब्दोका अभाव । ३ प्रसादयुक्तता। ४ पारिभापिक शब्दोका प्रयोग ।
५ अर्थगाम्भीर्य । विषय-परिचय
जीवट्ठाण' पहले खण्डका नाम जीवट्ठाण या जीवस्थान है। इसके आठ अनुयोगद्वार है-सत्प्ररूपणा, द्रव्यप्रमाणानुगम, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव और अल्पबहुत्व । इनमेंसे प्रथम अनुयोगद्वार सत्प्ररूपणाके कर्ता आचार्य पुष्पदन्त है और शेपके कर्ता आचार्य भूतवलि है ।
सत्प्ररूपणा-इसके सूत्रोकी सख्या १७७ है। इसका प्रारम्भ जैनोके प्रसिद्ध महामत्रसे होता है । वही इसका प्रथम सूत्र है, जो इस प्रकार है
णमो अरिहताण णमो सिद्धाण णमो आइरियाण ।
णमो उवज्झायाणा णामो लोए सव्व-साहूण ॥१॥ इसका व्याख्यान करते हुए वीरसेनस्वामीने मगलके दो भेद निबद्ध और अनिबद्ध किये है । सूत्रोके आदिमे सूत्रकारके द्वारा निवद्ध किये गये देवता-नमस्कारको निवद्ध मगल और सूत्रके आदिमें सूत्रकारके द्वारा किये गये देवता-नमस्कारको अनिबद्ध मगल बतलाकर उन्होने इसे निवद्ध-मगल कहा है । इससे यह प्रकट होता है कि यह मगल पुष्पदन्तके द्वारा रचित है क्योकि निवद्धसे उनका १ यह पहला खण्ड प्रथम वार श्रीमन्त सेठ शितावराय लक्ष्मीचन्द, जैन साहित्योद्धारक
फण्ड कार्यालय, भेरसासे ५ जिरदोंमें प्रकाशित हुआ है। २ 'तत्य णिबद्ध णाम जो सुत्तस्सादी सुत्तकत्तारण णिबद्ध-देवदा-णमोकारो त णिवद्ध
मगला जो सुत्तस्सादीए सुत्तकत्तारेण कय-देवदा-णमोकारो तमणिवद्वमगल । इद पुण जीवट्ठाण णिवद्धमगल । यत्तो 'इमेसि चोइसण्ह जीवसमासाण' इदि एदस्स सुत्तस्सादीए णिवध 'रामो अरिहंताण' इच्चादिदेवदा णमोकार-दसणाटो।'
-पट ख०, पु. १, पृ० ४१ ।