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६० : जैनसाहित्यका इतिहास न्धमें कुछ नही कहा । हाँ, इसका उद्गम स्थान अवश्य बतलाया है।
तीसरे खण्ड 'बधसामित्त विचम'के पहले सूत्रमें उसका नाम आया है । यथा'जो सो बंधसामित्तविचओ णाम तस्स इमो दुविहो णिद्देसो ओघेण य आदेसेण य। ___ महाकर्मप्रकृतिप्राभृनके चौबीस अनुयोगद्वारोमेंसे प्रथम दोका नाम कृति और वेदना है। इन्ही दो अनुयोगद्वारोका कथन वेदना नामक चौथे खण्डों है । पहले कृतिका कथन है और फिर वेदनाका । वेदना अधिकारके पहले सूत्रमें-'वेदणा त्ति तत्थ इमाणि वेयणाए सोलस अणियोगद्दाराणि णादव्वाणि भवति' ऐसा उल्लेख है । इस परसे कहा जा सकता है कि सूत्रकारने इस खण्डका नाम सूचित कर दिया है।
उक्त दो अनुयोगद्वारोके पश्चात् स्पर्श, कर्म, प्रकृति और बन्धन अनुयोगद्वारका कथन ५वें वर्गणाखण्डमें है। वन्धन-अनुयोगद्वारमें वर्गणाका बहुत विस्तारसे वर्णन है । इसीसे सम्भवतया इस खण्डको वर्गणा नाम दिया गया है।
वेदनाखण्ड और वर्गणाखण्डके बीचमे सूत्रकारने कोई ऐसी भेदरेखा सूचित नही की, जिससे इन दोनोके भेदका स्पष्ट सूचन हो सके। फिर भी वेदनाखण्डमें सोलह अनुयोगद्वार उन्होने बतलाये है, अत उनकी समाप्तिके साथ ही वेदनाखण्डकी समाप्ति समझ लेनी चाहिये। जैसे वेदनाखण्डमें पहले कृतिका कथन है, फिर अन्तमें वेदनाका कथन है और वही उस खण्डका प्रधान तथा अन्तिम विपय है, वैसे ही वर्गणामे पहले स्पर्श, कर्म और प्रकृतिका कथन है फिर बन्धनके निमित्तसे वर्गणाका कथन है । वर्गणाका कथन ही इस खण्डका प्रधान और अन्तिम प्रतिपाद्य विषय है । अत वेदनाके पश्चात्से वर्गणा पर्यन्त ही वर्गणाखण्ड होना चाहिये ।
खण्डोकी ये सज्ञाएँ वीरसेनस्वामीसे प्राचीन है, क्योकि वीरसेनस्वामीके पूर्वज अकलकदेवने अपने तत्त्वार्थवातिकमें 'जीवस्थान' और 'वर्गणा' खण्डोका उल्लेख किया है, यह हम पहले लिख आये है ।
वर्गणाखण्डका अन्तिम सूत्र है
'ज त बधविहाण त चउन्विह-पयडिवधो, ठिदिवघो, अणुभागबधो, पदेसबधो चेदि।'
इसके पश्चात् महाबन्ध नामक छठा खण्ड प्रारम्भ होता है ।
इसका महाबन्ध नाम मूल-सूत्रोमें उपलब्ध नही होता । ग्रन्थका प्रथम ताडपत्र अनुपलब्ध होनेसे यह भी नहीं कहा जा सकता कि इस खण्डकी रचनाके आरम्भमें भूतबलिने उसका नाम दिया था, या नही । किन्तु इसमें बन्धके चारो भेदोका वर्णन विस्तारसे है, अत. इसे महाबन्धसंज्ञा दी गई है।