________________
। छक्खंडागम : ५९ प्रस्तुत पट्खण्डागममें शुरूके पांच खण्ड ही है । छठा महावध नामक खण्ड स्वतंत्र ग्रन्थके रूपमें पृथक् माना जाता है।
'इन्द्रनन्दिने श्रुतावतारमे लिखा है कि भूतवलिने पुष्पदन्तविरचित सूत्रोको मिलाकर पांच खण्डोके छह हजार सूत्र रचे और तत्पश्चात् महावन्ध नामक छठे खण्डकी तीस हजार सूत्रग्रन्थरूप रचना की। । ।
पट्खण्डागमके सूत्रोके अवलोकनसे प्रकट होता है कि प्रथम खण्ड जीवट्ठाणके आदिमे सत्प्ररूपणासूत्रोके रचयिता पुष्पदन्ताचार्यने मगलाचरण किया है ।
और तदनुसार धवलाकारने भी कर्ता, श्रुतावतार आदिका, जो कि ग्रन्थके प्रास्ताविक कथन माने गये है, कथन किया है। पट्खण्डागमके कर्ता भूतबलिने चौथे खण्ड वेदनाके आदिमे पुन मगल किया है और तदनुसार धवलाकारने भी जीवट्ठाणके आदिकी तरह कर्ता, निमित्त, श्रुतावतार आदिको पुन. चर्चा की है । इससे यह पट्खण्डागम ग्रन्थ दो भागोमे विभक्त प्रतीत होता है । पहले भागमें आदिके तीन खण्ड है और दूसरे भागमे अन्तके तीन खण्ड है । इस दूसरे भागमे ही यथार्थत महाकर्मप्रकृतिप्राभृतके चौबीस अधिकारोका वर्णन किया गया है। अत. प्रो० हीरालालजीने उसको विशेप सज्ञा सत्कर्मप्राभृत वतलाई है।
उन्होने लिखा है-'इस समस्त विभागमे प्रधानतासे कर्मोकी समस्त दशाओका विवरण होनेसे उसकी विशेप सज्ञा सत्कर्मप्राभृत है। महाकर्मप्रकृतिप्राभृतका अपर नाम सत्कर्मप्राभृत समझकर ही प्रोफेसर साहबने ऐसा लिखा प्रतीत होता है, किन्तु इन दोनोके अन्तरकी चर्चा हम पीछे कर आये है । अत उन सबको सत्कर्मप्राभृत नही कहा जा सकता। खण्डोके नाम
षट्खण्डागमके मूलसूत्रोमें जैसे ग्रन्थका कोई नाम नहीं पाया जाता, वैसे ही खण्डोका नाम भी प्राय नही पाया जाता।
पहले खण्डका नाम जीवट्ठाण मूलसूत्रोमें नही पाया जाता। इस खण्डमे जीवके भेद-प्रभेदोको मुख्यतासे वर्णन होनेके कारण ही इसे यह नाम दिया गया है । दूसरे खण्डका प्रथम सूत्र है-'जे ते बधगा 'णाम तेसिमिमो णिद्देसो', इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस खण्डमें बन्धकोका कथन है । अत उस परसे इसे वन्धसज्ञा दी गई है और सम्भवतया 'महावन्ध' को दृष्टिमें रखकर बन्धके पहले 'खुद्दा' विशेषण लगाकर खुद्दाबन्ध नामसे इसे अभिहित किया गया है ।
किन्तु इस खण्डकी धवलाटीकाके प्रारम्भमे टीकाकारने इसके नामके सम्ब१ 'सूत्राणि पट्सहस्रग्रन्थान्यय पूर्वसूत्रसहितानि। प्रविरच्य महावन्याहये तत पष्ठक
खण्डम् ॥१३९।। त्रिशतसहस्रसूत्रग्रन्थ व्यरचयदसौ महात्मा ।-श्रुता० ।