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४५६ : जैनसाहित्यका इतिहास
उक्त प्रतिमा लेसोमे यह स्पष्ट है कि ज्ञानभूपण १५३४म भट्टारक पद पर थे। किन्तु वे कब उस पद पर बैठे यह ज्ञात नही है। सकलकीति भट्टारको विपयमें प० परमानन्द जीने लिखा है कि वे ग १४४४मे गद्दी पर आमीन हुए थे और रावत् १४९९के पूप मागमें उनकी मृत्यु महगाना (गुजगत)में हुई थी। इनके शिष्य तथा कनिष्ठ भाता न जिनदागने कई ग्रथ रने है। १५२० स०मे इन्होने गुजराती भापामें हरिवग रागकी रचना की है। उनके प्रयोकी प्रगस्तिम सकलकीति और उनके गिप्प भुवनकीतिका नाम है शानभूषण का नहीं है। अत शानभूपण १५२० के पश्चात् और १५३४ से पहले गद्दी पर बैठे थे। __श्रीयुत प्रेमीजीने जिग जैनधातु प्रतिमा लेख संग्रहका उल्लेख किया है उसमें नन्दिसघ बलात्कारगण गरस्वती गच्छो उक्त आचार्योंके अनेक प्रतिमा लेप सगहीत है जिनसे उनके गमय पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। उन प्रतिमालेसोके अनुसार जिस सम्बत्मे जो आचार्य भट्टारक पद पर प्रतिप्ठित थे उनकी तालिका इस प्रकार हैलेस न० ५३५-स० १४८८ भ० पमनन्दिदेव , न० ६-म० १४९२ भ० सकलकीति , न० ६७३-० १५०९ भ० भुवनकीर्ति
७४८-म० १५१३ ७५१-स० १५१५ ६६-सं० १५१६ ४४-स० १५२३ ४३-स० १५२६ भ० ज्ञानभूपण ८६७-सं० १५३४ ॥ ६७४-स० १५३५ " ५०९-स० :५३० ५०३-स० १५५७ विजयकीर्ति ४९७-सं० १५५९ ६९३-स० १५६१ ६७७–स० १६११ शुभचन्द्र
६८-सं० १६३२ सुमतिकीर्तिके शिष्य गुणकीर्ति १३९०-स० १६५१ गुणकीर्तिके शिष्य वादिभूपण , १४५१-सं० १६६० भ० वादिभूपण अत उक्त प्रतिमा लेखोसे यह स्पष्ट है कि भ० ज्ञानभूपण स० १५२६ से