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४१२ : जेनमाहित्यका इतिहास गाथा भी जीवकाण्डकी ही है। इस अधिकारी विगेपता यह है कि उगम पहले दोनो करणोग स्वस्गको अगगदृष्टिो नारा गमाया गया है। ९ कर्मस्थितिरनना अधिकार
प्रतिगगग बपनेवाले कर्मपरमाणुओका आठो कोम विभजन होनो पश्चात् प्रत्येक कर्मप्रतिको प्राप्त कर्मनिपेकोकी रगना उगकी रिगतिी अनुसार आवायाकालको छोड़कर हो जाती है अनि बन्नको प्राप्त हुए ये कगपरमाणु उदयकाल आने पर गिरने प्रारम्भ हो जाते है और अन्तिम रियति पर्यन्त गिरते रहते है। उनकी रचनाको ही नर्मस्थिति रनना कहते है उगीका कथन इस अधिकारमें है। वन्धोदय मन्वाधिकार नागा दूगर अधिकारको अन्तर्गत स्थितिवन्धाधिकारके अन्तमें भी यह कयन आया है। फलत गावा न० ९१४ मे १२१ ता जो गाया है वे मर गानाएं उग अभिग्गे आती है और वहाँ उमका नम्बर १५५ से १६२ तक है । किन्तु यहाँ यही गगन विस्तार किया है। अन्त में प्रगस्ति है ।
सपमे यह कर्म काण्डका परिचय है। लब्धिसार-क्षपणामार
लब्धिसार-गोम्मटगार अनिरिकन नानपिनन्द्रानार्गको दूमरी कृति लन्धिसार है । यह गाथा बद्ध है । इसके भी दो गकरण प्रागित हुए है, एक रायवद गास माला बम्बई गे। इसमे मूल तथा १० मनोहरलालजी द्वारा रचित सक्षिप्त हिन्दी टीका है, जिसमें गायाका अर्थमा दिया गया है। इसमे गाथाओकी सख्या ६४९ है । दूगरा सम्करण हरिभाई देवकरण ग्रन्य मालामे प्रकाशित हुआ है, गास्नाकार है । इसमें लभिसार पर नेमिनन्द्र रचित मस्कृत टीका और प० टोडरमलजी रचित ढुढारी भापाकी टीका है। तया क्षपणासार पर केवल प० टोडरमलजी रचित भापा टीका ही है। इगकी गाथा सस्या ६५३ है । इस अन्तरका कारण यह है कि दूसरे सस्करणकी गाथा न० १५६, १६७, २५४, ५३१ चार गाथाएँ पहले सस्करणमे नही है । ____ यह लब्धिसार क्षपणासार गोम्मटसारका ही उत्तर भाग समझना चाहिये । गोम्मटसारके जीवकाण्डमें जीवका और कर्मकाण्डमे जीवके द्वारा वांधे जाने वाले कर्मोका कथन है और इस लब्धिसारमें जीवके कर्मवन्धनसे मुक्त होनेका उपाय तथा प्रक्रिया बतलाई गई है।
मोक्षकी पात्रता जीवमें सम्यक्त्वकी प्राप्ति होने पर ही मानी जाती है क्योकि सम्यग्दृष्टि जीव ही मोक्ष प्राप्त करता है। तथा सम्यग्दर्शन होनेके पश्चात् सम्यक् चारित्रका भी होना जरूरी है। अत सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्रकी