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___ उत्तरकालीन कर्म-साहित्य : ३९७ यदि श्लोक १७६ के उत्तरार्धके स्थानमें श्लोक १७७ के पूर्वार्धको रख दिया जाये तो गाथानुसार अनुवाद हो जाता है ।
इन उदाहरणोंसे यह स्पष्ट है कि अमितगतिने नेमिचन्द्राचार्यके गोम्मटसारका भी उपयोग अपने स० पञ्चसग्रहमे किया है । अत गोम्मटसार स० पञ्चसग्रहसे (वि० स० १०७३) तीस पैतीस वर्ष पूर्व रचा गया होना चाहिये । और इसलिये उसका रचनाकाल वि० स० १०४० के लगभग जानना चाहिये । विषय-वस्तु
यह पहले लिखा जा चुका है कि गोम्मटसारके दो भाग है, पहले भागका नाम जीवकाण्ड है और दूसरे भागका नाम कर्मकाण्ड । जीवकाण्डके तीन संस्करण प्रकाशित हुए है। गाँधी नाथारगजी बम्बई द्वारा प्रकाशित सस्करणमे मूल गाथाएँ और उनकी सस्कृत छाया मात्र है। रायचन्दशास्त्रमाला वम्बईसे प्रकाशित सस्करणमें प० खूबचन्दजी रचित हिन्दी टीका भी दी गई है। ये दोनों सस्करण पुस्तकाकार है । गाँधी हरिभाई देवकरण ग्रन्थ मालासे प्रकाशित शास्त्राकार सस्करणमें मूल और छायाके साथ दो सस्कृत टीकाएँ तथा प० टोडरमलजी रचित ढुढारी भाषामें टीका है। पहले दोनो सस्करणोमें गाथा सख्या ७३३ है। किन्तु प्रथम मूल सस्करणमें दूसरेसे एक गाथा जिसका नम्वर ११४ है, अधिक है, यह गाथा दूसरे सस्करणमें नही है। फिर भी गाथा सख्या वरावर होनेका कारण यह है कि प्रथम मूल सस्करणमें दो गाथाओ पर २४७ नम्बर पड गया है । अत पूरे ग्रन्थकी गाथा सख्या ७३४ है । तीसरे सस्करणमें गाथा सख्या ७३५ है । इसमें एक गाथा वढ जानेका कारण यह है कि गाथा न० ७२९ दो बार आई है और उस पर दोनो वार क्रमसे ७२९-७३० नम्वर पड गया है। अत जीवकाण्डकी गाथा सख्या ७३४ है।
जैसा इस भागके नामसे व्यक्त होता है इसमें जीवका कथन है । ग्रन्थकारने प्रथम गाथामें मगलपूर्वक जीवका कथन करनेकी प्रतिज्ञा की है और दूसरी गाथामें उन बीस प्ररूपणाओको गिनाया है जिन वीस अधिकारोके द्वारा जीवका कथन इस ग्रन्थमें किया गया है। वे वीस प्ररूपणाएँ है--गुणस्थान, जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, सज्ञा, १४ मार्गणाएँ और उपयोग। इन्ही वीस प्ररूपणाओका कथन पञ्चसग्रहके जीव समास नामक अधिकारमें किया गया है। उसीका विस्तारसे प्रतिपादन जीवकाण्डमें है । जीवसमास प्रकरणकी २१६ गाथाओ से अधिकाश गाथाएँ जीवकाण्डमें ज्योकी त्यों ले ली गई है।
गोमट्टसार एक सग्रह ग्रथ है, यह वात कर्मकाण्डकी गाथा न० ९६५में आये हुए 'गोम्मटसग्रह सुत्त' नामसे स्पष्ट है । जीवकाण्डका संकलन मुख्यरूपसे पञ्चसग्रहके