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________________ ३८४ · जेनसाहित्यका इतिहास कनकनन्दिकी विस्तर सत्व विभगी आचार्य कनकनन्दि रचित विस्तर सत्व विभगी नामक एक ग्रन्थ जैनमिद्धात भवन आरामे वर्तमान है । उमकी कागज पर लिपी हुई दो प्रतिया हमे देखनेको प्राप्त हुई । जो गभवत एक ही लेयककी लिखी हुई है। दोनोंकी गाथा सख्याओ गे अन्तर है । एककी गंख्या ४८ है और दूसरीमे गाथाओकी गरया ५१ है। तथा दूसरी प्रतिम गायाओके साथ गदृष्टिया भी दी हुई है । इसीमे पहली प्रतिकी पृष्ठगरया नेवल ३ है दूगरीकी ७ है। कर्म काण्डमें इस कनक नन्दि विरनित विस्तर रात्व विभगीको आदिमे अन्तकी गाथा पर्यन्त गम्मिलित कर लिया गया है। केवल वीचकी ८ या ११ गाथायें या तनमे छोर दी गई है। क्योकि कर्मकाण्डम इस प्रकरणकी गाथाओकी मस्या ३५८ गे ३९७ तक ४० है। उस प्रकरणमें कर्मोके रात्व स्थानोका कथन गुणस्थानाम भगोके साथ किया गया है। इसका विशेष परिचय आगे कर्मकाण्डका परिचय कराते हुए दिया जायेगा। जो गाथाये छोड दी गई है उनके छोड देनेमे भी प्रकृत कथनमें कोई बाधा नहीं आती। हा, उनके रहनेमे प्रकृत विषयको चर्चा थोडा विशेप स्पष्ट हो जाती है। प्रथम और द्वितीय प्रतिके अनुसार छोडी हुई गाथाओकी क्रममख्या इस प्रकार है-४-५ । (यह गाथा दूसरी प्रतिमे व्यतिक्रममे दी गई है इससे इसकी सख्या उसमे ५ है। गा० ९, १० । दूसरी प्रतिमै १५ नम्बर पर स्थित गाथा पहली प्रतिमे नही है । अत दोनोकी सस्यामें एकका अन्तर पड गया है । फलत. छोडी गई गाथाओकी क्रम मख्या पहली प्रतिके अनुसार २२, २३, २८ ३० है और दूसरीके अनुसार २३, २४, २९ और ३१ है। दूसरी प्रतिकी गाथा ३८-३९ पहली प्रतिमें नही है। अत दानोकी सख्यामे तीनका अन्तर है । फलत पहली प्रतिके अनुसार छोडी गई ८वी गाथाकी सख्या पहली प्रतिमें ४१ और दूसरीमें ४४ है। इस तरह कर्मकाण्डमें उक्त नम्वरकी गाथायें छोड दी गई है। _____ साथ ही एक जगह थोडा व्यतिक्रम भी पाया जाता है। त्रिभगीकी गाथा न० १५, १६ और १७ की क्रम संख्या कर्मकाण्डमें, क्रमसे ३६८, ३६९, ३७० है । तथा गा० १४ की क्रमसख्या ३७१ है। अर्थात् गाथा १४ को जिसमे प्रथम गुण स्थानके सत्वस्थानोमें भगोकी सख्या वतलाई गई है कर्मकाण्डमें १५, १६, १७ के वाद दिया है। इन तीनो गाथाओमें प्रथम गुणस्थानके कुछ स्थानोमें भगोका स्पष्टीकरण किया गया है। अत त्रिभगीमें पहले भंगोकी सख्या वतलाकर पीछे उसका स्पष्टीकरण किया गया है। और कर्मकाण्डमें पहले स्पष्टीकरण करके पीछे भंगोकी संख्या वतलाई है। अस्तु,
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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