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३६६ • जेनसाहित्यका इतिहास
ऐसी स्थिति तचूर्णिका अनुगरण मितमेन ने किया हो यह राभव है यद्यपि निश्चयपूर्वक नही कहा जा सकता ।
नवागवृत्तिकार अगयदेवसूरिनं सप्नतिका या सित्तरी पर एक भाष्य रचा था । इसके प्रारम्भमें उन्होने लिया है कि यह भाष्य में सित्तरीकी चूर्णिके अनुगार लिखता हूँ । गत. अभयदेवसूरि (१०८८-११३५ स० ) से पहले मित्तरी चूर्णिकी रचना हो चुकी थी । और सित्तरीचूर्णिने पहले शतकपूणि रची जा चुकी थी । यह उसके देगनेगे प्रकट होता है ।
मि० तू. में कई स्थलो पर 'एयासि अत्यनविवरणा जहा गयगे' ( पृ० ३ ), आदि पदोके द्वारा कर्मोके भेद-प्रभेदोका, गुणस्थानोका, जीवस्थानीका, विवरण शतक ग्रन्यकी तरह कला है । मूल तक ग्रन्यमें तो उनके नाममात्र गिनाये है, उनका विवरण तो चूर्णिमें ही पाया जाता है । मत यही स्वीकार करना पडता है कि सि० चू० के कर्ताने 'शतक' नामरो शतकचूर्णिका ही निर्देश किया है । मतः जब सि० चू० वि० ग० ११०० में पहले रची जा चुकी थी तो दातकचूर्णि उससे भी पहले रची गयी थी । और इसलिये शतकचूणिको रचना की उत्तराaft विक्रम की दसवी शती मान लेना उचित होगा ।
अत हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि शतक चूर्णि वि० सं० ७५०-१००० तक कालमें किसी समय रची गयी है । और यदि पच राग्रहकार श्री चन्द्रर्पि महत्तर उसके रचयिता है तो कहना होगा कि वे इसी कालमें किसी समय हुए है ।
और यदि पञ्चग्रहमें निर्दिष्ट मत गर्गपिके कर्मविपाकका है तो उन्हें विक्रमको दमवो शताब्दीके अन्तका विद्वान् मानना होगा ।
वृहच्चूर्णि और लघुचूर्णि
शतककी हेमचन्द्राचार्यरचित वृत्तिसे तथा मलयगिरिको कुछ टीकाओंसे प्रकट होता है कि शतकपर दो चूर्णिय थी - एक वृहच्चूर्णि और एक लघुचूर्णि । प्रकृत शतकचूणि लघुचूर्णि है ।
हेमचन्द्र ने अपनी शतक वृत्तिके प्रारम्भमें लिसा है कि यद्यपि पूर्व चूर्णिकारो
१ 'नमिउण महावीर कम्मट्ठपरूवण करिस्सामि वधोदयसप्तेहिं सत्तरियाचुनिअनुसार ॥१॥
स० भा०
२
जै० सा०५० (गु०), पृ० २१७ ।
३ च यद्यपि पूर्वचूर्णिकारैरपि व्याख्यातम्, तथापि तच्चूर्णी नागतिगम्भीरत्वात् '
श० पृ०, १ ।