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________________ २० · जनमाहित्यका इतिहाग पाया जाता, तथापि गम्प्रदागम देगा गया इगलिंग गहा बैगा ली लिग दिया' । ___ अत श्वेताम्बर पट्टावलियां भी गर्वाग्यत नही ।। १० बंधने (201o, जि० १९, १० २९३ आदि) नन्दिमूलकी ग्गविगालीगो विषयमे रिगा है कि उगमे बी अनिश्चितता है । भारवर्ग गागा १-०के गिग लिया क्षेपक होनरो वृत्तिमं उनका मन नहीं किया । गागा ३३-३ / टिप्पणी है कि इन दोनो गाथाओ अयं आवस्यापियो आधागे लगा है, अरणिगे भी नही है । गाया ४१-४२ प्रक्षिप्त है । गामिन्दानागी पियम उगमा T i 'मिपक्रम मा अभाव होने वृत्ति में नही Tr-मारण्याटी मिा है।' ___टा नारने जो गागनम्बर दिया गायानम्बर गा गागने उगम्गित म्थविगली मेट नही गाता । वह लिने गागानम्बर ३. गिगमें आर्य नन्दिलाा निर्देश है, नोहागपद है। मयगिन्टिीमायाले नन्दिमाम नग पट्टावलीगमनयम प्रमाणित नन्गूिगपट्टापलीम आयं नन्दिरगाली गागा नम्बर २. है । उस तरह नारका अन्तर है। गदि दो प्रसित गावाओ भी निगरिन कर लिया जाग नो भी दोका अन्नर रहता ही है। अत नन्दिमानी पट्टावली भी सुव्यवस्थित नही है और इगलिये उगो आधारपर आर्गमग और नागहग्नीके मध्यम जो एक गताब्दिगे भी अधिक का अन्नगल निारता, विगनीय नही माना जा गस्ता। गुणधर और धरमेनका पौर्वापर्य आर्यमक्ष और नागहस्तिकी प्रामगिक चर्ना अनन्तर हम पुन. आ०गुणधरती ओर आते है। आचार्य गुणधरके रामयपर प्रकाश डालने के लिए धग्मेनके गमयपर संक्षेपमें चर्चा करना अनुपयुक्त न होगा। ___ धवलाकाग्ने वीर-निर्वाणमे ६८३ वर्ष पश्नात् जब अगपरम्परामा विच्छेद हो गया, उनका भी होना बतलाया है। किन्तु जैसे गुणधर और यतिवृपभका नाम किमी दि० जैन पट्टावलीमे नही पाया गया, वैनी वात धरमेन और उनके गिष्य भूतवलि-पुष्पदन्तके विपयम नही कही जा सकती। नन्दीसपकी प्राकृतपट्टावलीमे इन गुरु-शिष्योका नाम पाया जाता है । यह पट्टावली कई दृष्टियोमे महत्त्वपूर्ण है। यद्यपि इसमे भी महावीरके निर्वाणके पश्चात् ६८३ वर्षोंमे कालक्रममे होनेवाले आचार्योकी नामावली प्राय उसी क्रममे दी है जिस क्रममे वह तिलोयपण्णत्ति, धवला, जयधवला आदिमें पाई जाती है किन्तु उममें जो कालगणना दी है उममे उक्त सब ग्रन्थोसे वैशिष्ट्य है। उक्त ग्रन्योम महावीर-निर्वाणसे अन्तिम आचारागधर लोहाचार्य तककी कालगणना ६८३ वर्प बतलाई है। किन्तु नन्दी० पट्टा० के अनुमार लोहाचार्य तक ५६५ वर्ष ही होते है । इस तरह
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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