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३३४ जेनसाहित्य का इतिहास गाथाएं ऐसी है जो दोनों में पायी जाती है-चौदह गुण स्थानो को नाम सूचक दो गाथाएं, जिनकी राख्या श्वे० जी० स० में ८-९ और दि० जी० स० में ४-५ है, पर्याप्ति के नागादि बतलानेवाली गाथा, जिगगो प्रगगरया २० जी० स० में २५ और दि० जी० स० में ४४ है, 'मुलग्ग पारवीया' इत्यादि गाया। दो एक गाथागोका केवल पूर्वाण दोनो गे समान है। इसके गिवाय और कोई ऐसी वात नही मिलती जिसके आधार पर कहा जा सगे कि एक का दूसरे पर प्रभाव है। दोनोका विषय वर्णन मादि स्वतम है। हा, नामसाम्य मयन्य है।
फिर भी यह बात नही मलाई जा माती कि पन राग्रह एम सग्रहात्मक ग्रथ है । भौर जीव रामास अधिकार भी उससे अछूता नहीं है। ___ ऊपर जो एक गाथा 'छम्गासाउग मेरो उद्गृत की गयी है, जो कि भगवती आराधना में भी है गौर जिग वीरगेन स्वामीने आगमण होने में सन्देह किया है, उसकी स्थिति सन्देह कारक है गोंकि जिगो नचनोगो यह आप रूपमें उपस्थित करें उसमें ही एक ऐसी गाया पाया जाना, जिसके मागमस्प होनेमे सन्देह है, इस जीव रागास की स्थिति में सन्देह उत्पन्न करता है। सम्भव है उसका सग्रह भगवती मा० से ही सग्रहकार ने किया हो क्योकि उमरी मागेकी एक गाथाको छोडकर तीन गाथाएं कमायपाहुकी है जो इन प्रकार है
'दसणमोहवखवणापटुवगो मम्मभूमिजादी य । णियमा मणुमगईए मिट्ठवगो चावि सन्चत्य ॥२०॥ सवणाए पट्ठवगो जम्मि भवे णियमदो तदो गन्ते । णादिक्कदि तिण्णि भव दसणमोहम्मि सीणम्मि ॥२०३॥ दसणमोहस्सुवसामगो दु चउसुवि गईसु वोहन्यो ।
पचिदिओ य सण्णी णियमा सो होइ पज्जत्तो ॥२०४॥ इसी तरह और भी कुछ गाथाएं सगृहीत हो सकती है।
पच सग्रहके दूसरे अधिकार का नाम प्रकृति समुत्कीर्तन है । इसकी पहली गाथा में भी जीव समासकी तरह हो मगलपूर्वक प्रकृति समुत्कीर्तनको कहनेकी प्रतिज्ञा की गई है। इसमें १२ गाथाएँ और कुछ प्राकृत गद्य है । जैसा इसके नाम से व्यक्त होता है इस अधिकार में आर्यो कर्मों के नाम और उनकी प्रकृतियोका कथन है।
आठो कर्मोक नामोको बतलानेवाली गाथा उनकी प्रकृतियोको सख्या सूचक गाथा कर्मस्तवमें वर्तमान है। तीसरे अधिकारमें कर्मस्तवकी बहुत-सी गाथाएँ है, अत मानना पडता है कि ये दोनो गाथाएँ भी उसीकी हो सकती है। कर्मोकी
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