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________________ ३३० . जैनसाहित्यका इतिहास और धवला में उद्धृ त गाथाएँ इस प्रकार है 'कुक्खि-किमि-सिप्पि सखा गडोलारिटु अक्ख-खुल्ला य । तह य वराडय जीवा णेया वीइदिया एदे ॥१३६।। कुथु-पिपीलिक-मक्कुड-विच्छिय-जू-इदगोव गोम्ही य । उतिरगणट्टियादी या तेइदिया जीवा ॥१३७॥ मक्कडय-भमर-महुवर-मसय-पयगा-य सलह गोमच्छी । मच्छी सदंस कीडा णेया चरिंदिया जीवा ॥१३८॥ सस्से दिम-सम्मच्छिम-उन्भेदिम-ओववादिया जीवा । रस-पोदंड जरायुज णेया पचिदिया जीवा ॥१३९॥' ~पट ख० पु. १, पृ० २४१-२५६ । इनमेंसे तेइन्द्रिय जीव सम्बन्धी गाथा में तो कोई अन्तर नहीं है, किन्तु शेष तीनो गाथाएँ भिन्न है और साथ में ही यह भी उल्लेखनीय है कि आगे १४० में जो गाथा उद्धृत है वह भी जी० स० में गाथा ७३ से आगे यथा क्रम पाई जाती है। मध्यकी केवल इन तीन गाथाओमें ही भेद होनेका कारण समझमें नही आता। ___ काय मार्गणामें ग्यारह गाथाएं उद्धृत है ये गाथाएं भी जीव समासमें है केवल उनके क्रममें अन्तर है। धवलामें उद्धृत गाथा १४४ का नम्वर जी० स० में ८७ है । १४५ से १४८ तक एक साथ उद्धृत गाथाओं की क्रमसख्या जी० स में ८२ से ८५ तक है । और १४९ से १५३ नम्बर तक उद्धृत गाथाओंकी सख्या जी० स० मे ७७ से ७८ तक यथाक्रम है। योग मार्गणामें १२ गाथाए उद्धृत है । उनमें अन्तिम गाथाको छोडकर, जो धवलामें प्रथम उद्धृत है, शेष गाथाएँ जी०स० में यथाक्रम पाई जाती है। उनमेंसे केवल तीन गायाओके प्रथम चरणमें पाठभेद है-ओरालिय मुत्तत्थं, । 'वेउन्विय मुत्तत्थ' और 'महारय मुत्तत्थ' इन तीन प्रथम चरणोके स्थानमें जीवसमास में 'अतोमुहुत्त मज्झ' पाठ पाया जाता है। इस मार्गणामें दो गाथा और भी उद्धृत है जो जी० स० में पाई जाती है। वेद मार्गणामें चार गाथायें उद्धृत है चारों यथाक्रमसे जी० स० में वर्तमान है ।किन्तु कसाय मार्गणामें उद्धृत गाथाओकी स्थिति इन्द्रिय मार्गणाके तुल्य है । दोनो को चार गाथाओमें अन्तर पाया जाता है। धवला में उद्धृत वे चार गाथाएँ इस प्रकार है सिल पुढवीभेद धूली जलराईसमाणो हवे कोहो । णारय-तिरिय-णरामर-गईसु उप्पायओ कमसो ॥१७४॥
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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