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अन्य कर्मसाहित्य ३२९ सेन स्वामीने जीव समास नामक अधिकारके आधार पर ही किया है और उससे लगभग सवा सौ गाथाए भी प्रमाणरूपसे उद्धृत की है ।
सत्प्ररूपणा में पहले मार्गणाओका निर्देश है पश्चात् गुणस्थानोका और पचसग्रह गत जीवसभासमें पहले गुणस्थानोका कथन है पीछे मार्गणाओका । सत्प्ररूपणा सूत्र ४ की घवलामें चौदह मार्गणाओका सामान्य कथन करते हुए वीरसेन स्वामीने चौदह मार्गणाओसे सम्वद्ध १६ गाथाए प्रमाणरूपसे उद्धृत की हैं जो प० स० के जीवसमास अधिकारमे ज्यो की त्यो वर्तमान है । आगे गुणस्थानो के वर्णनमें तेईस गाथाएँ प्रमाणरूपसे उद्धृत की है । ये सब भी इसी प्रमाण में वर्तमान है । और जीवसमासाधिकारमें उनकी क्रम संख्या क्रमश ३, ६, ७, ९, १०, १२, ११, १३, १४, १५, १६, १७, १८, १९, २०, २१, २२, २३, २४, २५, २७, २९, ३०, ३१ है । इनमेंमे क्वचित् ही साधारण-सा पाठ भेद पाया जाता है और केवल एक जगह गाथाका व्यतिक्रम है । सत्प्ररूपणा में गुणस्थानोके पश्चात् मार्गणाओका विशेष कथन है उसकी धवलामें भी प्रत्येक मार्गणाके प्रकरणमें जीव समासको गाथाए उद्धृत है | गति 'मार्गणा में पाच गाथाएँ पाचो गति सम्बन्धी उद्धृत है और उनकी क्रम सं० जी० स० में क्रमसे ६० से ६४ तक है । इन्द्रिय मार्गणामें जी० स० की गा० न० ६६, ६७ और ६९ क्रमसे उद्धृत है । आगे क्रमसे चार गाथाएँ और उद्धृत है जिनमें दो इन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय और पचेन्द्रिय जीवोको उदाहरण के रूप में गिनाया है । जो० स० में भी गा० ६९ से आगे ( ७०-७३ ) चार गाथाओ से दो इन्द्रिय आदि जीवोको गिनाया है किन्तु दोनो ग्रन्थो की केवल इन्ही गाथाओमें मेल नही है, भिन्नता है । नीचे उन चारो गाथाओको दिया जाता है ।
पञ्चसग्रह गत जीव समासमें ये चारो गाथायें इस प्रकार पाई जाती हैखुल्ला वराड सखा अक्खुणह अरिट्ठगा य गडोला । कुक्खि किमि सिप्पिआइ णेया वेइदिया जीवा ॥७०॥ कुथु - पिपीलिय- मक्कु - विच्छिय-जू विंद-गोव गु भीया । उत्तिंग मट्टियाई ( ? ) णेया तेइदिया जीवा ॥७१॥ दंस - मसगो य-मक्खिय- गोमच्छिय- भमर- कीड - मक्कडया | सलह - पयगाईया णेया चउरिदिया जीवा ॥७२॥ अंडज पोदज- जरजा-रसजा ससेदिया य सम्मुच्छा । उभिदिमोववादिय णेया पचिदिया जीवा ॥७३॥
१. पट्ख० पु० १, पृ० २०२-२०४ ।