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३२६ - जैनसाहित्यका इतिहास परमानन्दको है । उन्होने 'अनेकान्त' वर्ष ३, कि. ३ में 'अति प्राचीन प्राकृत पंच संग्रह' शीर्षक से एक लेख प्रकाशित कराया था। उसीसे उसकी जानकारी प्राप्त हुई थी । अब तो यह प्रकाशित हो चुका है। ___ इस पचसग्नहमें न तो उसके रचयिताका ही कोई निर्देश है और न ग्रन्थका ही नाम है । अन्तमें एक वाक्य लिखा है 'इदि पचसंगहो समत्तो।' उसीसे यह प्रकट होता है कि इसका नाम पच सग्रह है। इसमें पांच प्रकरण है-जीव समास, प्रकृति समुत्कीर्तन, कर्मस्तव, शतक और सप्ततिका । अत पंच सग्रह नाम तो उचित ही है । किन्तु यह नाम पीछेसे दिया गया है या पहलेसे रहा है यह चिन्त्य है।
जो दो संस्कृत पंच सग्नह है वे प्राय इसीको लेकर रूपान्तरित किये गये है, अतः उनके नामसे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि उनकी रचना के समय यह इसी नामसे प्रसिद्ध था। अमितगति (वि. स. १०७३) ने अपने पचसग्रहमें एक स्थानपर (पृ० १३१ ) लिखा है-पचसग्रहके अभिप्रायसे यह कथन है । मत पचसंग्रह नाम ही प्रचलित था ।
विक्रमकी तेरहवी शतीके ग्रन्थकार पं० आशाधरजीने भगवती आराधनाकी गाथा २१२४ पर रचित मूलाराधना दर्पण नामक टीकामें 'तदुक्त पञ्चसग्रहे करके छै गाथाएँ उद्धृतकी है । ये छहों गाथाएँ प्रकृत प्राकृत पचसग्रहके तीसरे अधिकारमें इसी क्रमसे पाई जाती है । हमारे जाननेमें आशाधरजो प्रथम व्यक्ति है जिन्होने प्राकृत पचसग्रहका इस प्रकार स्पष्टरूपसे निर्देश किया है। इससे यह निर्विवाद रूपसे निर्णीत हो जाता है कि विक्रमकी तेरहवी शतीमें प्रकृत ग्रन्थ पचसग्रहके नामसे ख्यात था तथा उससे पहले भी अर्थात् सस्कृत पचसग्रहके रचनाकालमें भी उसे पचसग्रह कहते थे।
विक्रमकी नौंवी शतीके प्रसिद्ध जैनाचार्य वीरसेनने अपनी धवलाटीकामें 'उक्त च' करके बहुत सी गाथाएँ उद्धत की है। उनमें बहुत-सी गाथाएं इस प्राकृत पंचसग्रहमें वर्तमान है। षट्खण्डागमके 'सत्प्ररूपणा' नामक प्रथम पुस्तकको धवलाटीकामें उद्धत जिन गाथाओको पादटिप्पणमें गोमट्टसार जीवकाण्डमें पाई
प्राकृत पञ्च सग्रह सुमति कीति की टीका तथा प. हीरालाल जी की भाषा टीका के साथ भारतीय ज्ञानपीठ से सन् १९६० में प्रथमवार प्रकाशित हुआ है । इसी में उसकी प्राकृत चूर्णि तथा श्रीपाल सुत डड्ढा विरचित सस्कृत पचसग्रह भी प्रथमवार प्रकाशित हुआ है। दूसरा प्राकूत पचसग्रह स्वोपज्ञ और मलय गिरि की वृत्ति के साथ मुक्ताबाई ज्ञान मन्दिर डभोई (गुजरात) से सन् ३७-३८ मे प्रकाशित हुआ है। अमितगतिकृत पचसग्रह मूल माणिक चन्द ग्रन्थ माला बम्बई से प्रथमवार प्रकाशित हुआ था।