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३०८ - जैनसाहित्यका इतिहास त्ति वि । एसा कम्मपवादे । जा सा करणोवसामणा सा दुविहा-देसकरणोवसामणा त्ति वि सम्वकरणोवसामणा त्ति वि । देसकरणोवसामणाए दुवे णामाणि-देसकरणोवसामणा त्ति वि अप्पसत्थोवसामणा त्ति वि । एसा कम्मपयडीसु । जा सा सव्वकरणोवसामणा तिस्से वि दुवे णामाणि-सव्वकरणोवसामणा त्ति वि पसत्थकरणोवसामणा त्ति वि । एदाए एत्थ पयद ।'-क० पा० सु०, पृ० ७०७-७०८।
'करणकयाऽकरणा वि य दुविहा उवसामणत्थ वि इयाए ।
अकरण अणुइन्नाए अणुओगधरे पडिवयामि ॥१॥ (चू०) 'करणकय' त्ति-करणोवसणा, 'अकरणकय' त्ति अकरणोवसामणा दुविहा उवसामणत्थ । 'विति-याए अकरणअणु इन्नाए'त्ति-वितिया अकरणोपसमणा तीसे दुवे नामधिज्जाणि-अकरणोपसमणा अणुदिन्नोपसमणा य, ताते अकरणोपसमणाते 'अणुओगधरे पणिवयामि' त्ति किं भणिय होति ? करण क्रिया, ताए विणा जा उवसामणा अकरणोवसामणा, गिरिनदीपापाणवट्टससारत्थस्स जीवस्स वेदनादिभि कारणरुपशातता भवति, सो अकरणोवसामणा, ताते अणुओगो वोच्छिन्नो, तो त अजाणतो आयारिओ जाणतस्स नमोक्कार करेति । करणुपसमणाते अहिगारोत्थ ।।१।।' क० प्र० ।
चूणिसूत्रमें उपशामनाके दो भेद किये है। करणोपशामना और अकरणोपशामना । अकरणोपशामनाके दो नाम है-अकरणोपशामना और अनुदीर्णोपशा मना। इसका कथन कर्मप्रवादमें बतलाया है ।
कर्मप्रकृतिमें भी उक्त भेद करके अकरण-उपशामनाके ज्ञाताओको नमस्कार किया है । उसकी चूर्णिमें लिखा है कि अकरणोपशामनाका अनुयोग नष्ट हो गया, इसलिए उसको न जाननेवाले कर्मप्रकृतिकार उसके ज्ञाताओको नमस्कार करते है । ___ आचार्य यतिवृषभ उसके विच्छेदकी घोषणा न करके कर्मप्रवाद नामक आठवें पूर्वमें उसका कथन होनेका निर्देश करते है। किन्तु कर्मप्रकृतिकार उसके ज्ञाताको नमस्कार करते है। और उनके चूर्णिकार कहते है कि कर्मप्रकृतिकारको उसका ज्ञान नही था क्योकि वह विच्छिन्न हो चुका था । इन दो प्रकारके कथनोसे दोनो चूणियोके कर्ता एक नही हो सकते ।
इसके सिवाय दोनो चूणियोमें जो भाषा-भेद पाया जाता है वह भी दोनोकी भिन्नकर्तृकताको ही प्रकट करता है । दिगम्बर धर्मकी मुख्य प्राचीन साहित्यिक भापा शौरसेनी है। किन्तु इस भापाका रूप कुछ विशेषताओको लिये हुए होनेसे उसे जैन-शोरसेनी कहते है । श्वेताम्बर आगम सूत्रो के भाष्य चूणि आदिकी