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३०६ : जेनसाहित्यका इतिहास
नन्दिसूत्रको स्थविरावलीमें नागहस्तीको कर्मप्रकृति प्रधान बतलाया है उसको लेकर शास्त्रीजीने लिखा है, जब यतिवृपभके गुरु कम्मपयडीके प्रधान व्याख्यातामोम थे तो यतिवृषभके सामने तो उसका होना स्वत सिद्ध है ? वात ठीक है, किन्तु जब यतिवृषभके सामने वर्तमान कर्म-प्रकृति थी तो नागहस्ती भी सभवत. उसीके प्रधान व्याख्याता होगे । और ऐसी दशा में वर्तमान कर्मप्रकृति नागहस्तीसे भी पूर्वरचित होनी चाहिये ? किन्तु यह राव निगधार कल्पना है । शास्त्रीजीने कसायपाहुडके चूणिसूत्रो और कर्मप्रकृतिको कतिपय गाथाओको उद्धृत करके यह प्रमाणित करनेको चेष्टा की है कि वर्तमान कर्मप्रकृतिके आधारपर ही चूणिसूत्र रचे गये है । किन्तु शास्त्रीजीने जितने तुलनात्मक उद्धरण दोनो ग्रन्योसे दिये है, वे सब निष्प्राण है, बल्कि उनके देखनेमे तो यही अधिक सभव प्रतीत होता है कि चूणिसूत्रकारने कर्मप्रकृतिका अनुसरण नहीं किया बल्कि कर्मप्रकृतिके रचयिताने कसायपाहुडके चूणिसूत्रोका अनुसरण किया है । यह सत्य शास्त्रीजीकी लेखनीसे भी प्रकट हुए विना नहीं रहा है । दर्शनमोह उपशामकके परिणाम, योग, उपयोग और लेश्यादिका वर्णन करनेवाले चूणिसूत्रोको उद्धृत करके शास्त्रीजीने लिखा है'इन सब सूत्रोंकी तुलना कम्मपयडीकी निम्न गाथासे कीजिये और देखिये कि किस खूवीके साथ सर्व सूत्रोके अर्थका एक ही गाथाम समावेश किया गया है ? (पृ० ३५) चूर्णिसूत्र और कर्मप्रकृति-चूणि____ कसायपाहुडके चूणिसूत्रोमें और कर्मप्रकृतिकी चर्णिमें यत्र तत्र कुछ साम्य प्रतीत होता है किंतु गहराईसे अवलोकन करने पर चूणिसूत्रोकी शैलीका कर्मप्रकृति की चूर्णिमें आभास नही मिलता । चूर्णिसूत्रोमें क्सायपाहुडकी गाथाओके व्याख्यानके लिए विभाषा और पदच्छेदकी जो शैली अपनायी गयी है यहां उसका अभाव है। कर्मप्रकृतिकी चूणि तो एक टोका प्रकारकी व्याख्या है जिसमें गाथाके अर्थको स्पष्ट करनेका प्रयल किया है । और उस परसे यह भ्रम होता है कि दोनों चूर्णियां एक ही की कृति है, किन्तु वात वास्तव में ऐसी नही है । दोनोंमें शैलीभेद और भाषाभेद तो है ही, सैद्धान्तिक-भेद भी परिलक्षित होता है। १. नीचे हम तुलनाके लिए शास्त्रीजीके उद्धरणोंगेसे एक उद्धरण देते हैं-'ज पदेसग्गमप्रणपयडि णिज्जदे, जत्तो पयहीदो त पदेसग णिज्जदि तिस्से पयटीए सो पदेससकमो। एदेण अठ्ठपदेण तत्थ पचविहो सकमो, त जहा, उज्वेलणसकमो, विज्झादसकमो, अद्धापवत्तसकमो, गुणसकमो, सबसकमो च ।' (क. पा. सू., पृ. ३६७ । इन चूर्णिसूत्रोंका मिलान कम्मपयडीकी निम्न गाथासे कीजिए
ज दलियमणपगड णिज्जइ सो सकमो यएसस्स। उज्वलणो विज्झाओ, अहापवत्तो गुणो सन्चो ॥६०॥ कर्मप्र.
~क. पा. सु. प्रस्तावना पृ०३३।