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२९२ : जैनसाहित्यका इतिहास
प्रशस्तिकी उक्त गाथा भी पीछेसे उसमें जोडी गयी जान पडती है । यदि वोद्दणराय यथार्थ में अमोघवर्ष प्रथम है तो कहना होगा कि पजिकाकी रचना वीरसेनके सामने अथवा उनके स्वर्गवासके पश्चात् तत्काल ही हो गयी थी । जयधवलाकी अन्तिम प्रशस्ति में वीरसेनके शिष्य जिनसेनने श्रीपाल, पद्मसेन, और देवसेन नाम के तीन विद्वानोका उल्लेख किया है । उनमेसे श्रीपालको तो उन्होने अपनी टीका जयधवलाका सम्पालक कहा है ये तीनो उनके गुरुभाई जान पडते है सम्भवतया उन्ही में से किसीने पजिकाका निर्माण किया हो ।