________________
कसायपाहुड पर उन्होने सोलह हजार पदप्रमाण पेज्जदोसपाहुडको एकसौ अस्सी गाथाओमे निवद्ध किया था।
२३ जयधवलाकारके अनुसार वे गाथाएँ आचार्य-परम्परासे आकर आर्यमा और नागहस्ती आचार्यको प्राप्त हुई थी । किन्तु इन्द्रनन्दिके अनुसार गुणधरने स्वय उनका व्याख्यान नागहस्ती और आर्यमाके लिये किया था)
v४ गुणधराचार्य अगज्ञानियोकी परम्परा समाप्त हो जाने पर वीर निर्वाणके ६८३ वर्षके पश्चात् किसी समय हुए। २५. जयधवलाकारने उन्हें वाचक भी लिखा है रसन स्वामी
अत गुणधराचार्यकी परम्परा तथा कालनिर्णय करनेके लिये उनके उत्तराधिकारी आर्यमा और नागहस्तीकी ओर ध्यान देना आवश्यक है । आर्यमक्षु और नागहस्ती
किन्तु गुणधरकी तरह आर्यमा और नागहस्तीका उल्लेख कपायाभृतके प्रसगसे केवल जयधवलाटीका और श्रुतावतारमे ही मिलता है, उपलब्ध अन्य दिगम्बर जैन साहित्य या शिलालेखो अथवा पट्टावलियोमें नहीं मिलता (जयधवलाकारने गुणवरको तो केवल वाचक लिखा है किन्तु आर्यमक्षु और नागहस्तीके पहले महावाचक और पीछे 'खवण' या 'महाखवण' जैसे आदरसूचक विशेपण लगाये है । इससे इतना ही व्यक्त होता है कि दोनो महान् आचार्य थे । इससे अधिक इनके सम्बन्धमे ज्ञात करनेका अन्य कोई उपाय नही है। हाँ, एक बात अवश्य उल्लेखनीय है। चूर्णिसूत्रकार यतिवृपभने अपने चूणिसूत्रोमे कई विपयोके सम्बन्धमें दो उपदेशोका उल्लेख किया है और उनमें से एक उपदेशको 'पवाइज्जमाण' कहा है । जयधवलाकारने 'पवाइज्जमाण' का अर्थ 'सर्वाचार्यसम्मत और गुरुशिष्यपरम्पराके क्रमसे आया हुआ' किया है । तथा उक्त उपदेशोमें नागहस्तीके उपदेशको पवाइज्जमाण और आर्यमक्षुके उपदेशको अपवाइज्जमाण कहा है । इसके सम्बन्धमें आगे विशेष प्रकाश डाला जायेगा।
कतिपय श्वेताम्वर पट्टावलियोमे आर्यमगु और नागहस्ती नामके आचार्योका निर्देश अवश्य मिलता है । नन्दिसूत्रको स्थविरावलीमें इन दोनो आचार्योका स्म१. 'एतेनाशा घोतिता आत्मीया गुणधरवाचकेन ।' -क० पा०, भा० १ पृ० ३६५ । २. 'महावाचयाणमज्जमखुखवणाणमुवदेसेण
महावाचयाण णागहत्यिसवणाणमुवदेसेण । -ज० ध० प्रेसकापी, पृ० ७५८१ । ३ 'भणग करग रग पभावग णाणदसणगुणाण ।
वदामि अज्जमगु सुयसागरपारग धीर ॥२८॥ वड्ढउ वायगवसो जसवसो अज्जणागहत्थीण । वागरणकरणभगियकम्मपयडीपहाणाण ॥३०॥,' -नन्दि०