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धवला-टीका · २२९ गणधर करते है। अत वीजपदोके व्याख्याता होनेके कारण गणधर ग्रन्थकर्ता कहे जाते है। ____ गणधरका कथन करते हुए लिखा है-'वे अक्षर-अनक्षररूप सव भाषाओमें कुशल होते है । समवसरणमें स्थित सव जनोको 'यह हमारी भापामें हमको समझाते है, इस प्रकार सबको विश्वासकारक होते है। और अपने मुखसे निकली हुई अनेक भाषामोमेंसे जो श्रोता जिस भापाका भापी होता है उसके कान उसी भाषाका प्रवेश कराते तथा अन्य भापाओका निवारण करते है।'
किन्तु धवलाके प्रारम्भमें वीरसेन स्वामीने भगवान् महावीरके अतिशयोका वर्णन करते हुए उनकी भाषाको यह विशेपता वतलाई है कि एक योजन क्षेत्रमें बैठे हुए और अठारह महाभाषाओ तथा सात सौ लघुभापाओके भाषी प्राणियोकी भाषाके रूपमें परिणत होनेवाली उनकी भापा होती है। तिलोयपण्णत्ति' आदिमें भी ऐसा ही कहा है । किन्तु उक्त कथनमें इससे अन्तर प्रतीत होता है । उसमें कहा है कि भगवान्के द्वारा कहे गये वीजपदोको, जो अवश्य ही अनेक भाषा गर्भित होते है, गणधरदेव उपस्थित प्राणियोको समझाते है और वे प्राणी उन्हें अपनी-अपनी भापामें समझते है । अर्थात् गणघरकी भापा भी भगवान्की भापाकी तरह सर्वभापात्मक होती है तथा गणधर जो जिस भापाका भापी है उसके कानमें वही भापा जाने देते है । शेपको रोक देते है । गणधरकी इस विशेषताका समर्थन अन्यत्रसे नहीं होता। श्वे. साहित्यके समवायागमें तीर्थङ्करके चौतीस अतिशयोमें एक अतिशय यह है कि भगवान् अर्धमागधी भापाके द्वारा १. सखितसद्दरयणमणतत्यावगमहेदुभूदाणेगलिंगसगयं वीजपद णाम। तेसिमणेयाण
वीजपदाण दुवालसगप्पयाणमट्ठारससत्तसयकुमाससरूवाण परूवओ अत्थकत्तारो णाम । वीजपटणिलीणत्यपरूवयाण दुवालसगाण कारओ गणहरभडारओ गथकत्तारो, अब्भुवगमादो। पटख. पु० ९, पृ० १२७ । 'परोवदेसेण विणा अक्खराणक्खरसरुवासेसभासाकुसलो समवसरणजणमेत्तरूवधारितणेण अम्हम्हाण भासाहि अम्हम्हाण चेव कहदित्ति सन्वेसि पच्चउप्पाअओ, समवसरणजणसोदिंदएसु सगमुहविणिग्गयाणेयभासाण सकरेण पवेसस्स विणिवारओ गणहरदेवो गयकत्तारो।'-पृ. १२८ ।
२ पटख., पु. १, पृ०६१। २. अट्ठरसमहाभासा खुल्लयभासासयाइ सत्त तहा। अक्खर-अणक्खरप्पयसण्णीजीवाण
सयलभासाओ॥९०१॥ एदासु भासासु तालुवदतो हव्कठवावारे । परिहरिय एक्ककाल भन्वजणे दिव्वभासित्त ॥९०२।।। ति. प ४, । 'एकतयोऽपि च सर्वनृभाषा सोन्तरनेष्टबहूश्च कुमापा । अप्रतिपत्तिमपास्य च तत्त्व बोधयति स्म 'जिनस्य महिम्ना ॥७॥'
-म० पु १३ पर्व। ३ 'भगव च ण अद्धमागहीए भासाए धम्ममाइक्खइ । सा वि ण अद्धमागही भासा भासि
ज्जमाणी तेसिं सव्वेसि आइरियमणाइरियाण दुपय-चउप्पय मिय-पसु-पक्खि-सरिसिवाणा अप्पप्पणो हियसिवसुहदाए भासत्ताए परिणमइ ।' समव०, ३५ ।