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२२४ : जैनसाहित्यका इतिहास सूत्रोमें ही उस प्रकारका कथन है । उन्होने जो गाथा उद्धृत की है वह दि० प्राकृत पञ्चसग्रहके जीवसमासनामक प्रथम प्रकरणकी दूसरी गाथा है। और जीवससासप्रकरणमें वीसो प्ररूपणाओका कथन है। सम्भवतया उसीके अवलम्वनसे वीरसेन स्वामीने वीस प्ररूपणाओका विस्तारसे निरूपण किया है। यह विस्तार अवश्य ही उनको प्रतिभाका चमत्कार हो सकता है ।
जीवट्ठाणके द्रव्यप्रमाणनामक अनुयोगद्वारके व्याख्यानको आरम्भ करते हुए वीरसेन स्वामीने जो मंगलाचरण किया है उसमें 'दव्वणिोग गणियसार' लिखकर द्रव्यानुयोगको गणितसार कहा है। चूकि इस अनुयोगद्वारमें जीवोकी सख्याका वर्णन है अत' इसमें गणितकी प्रधानता है । स्व० डा० अवधेश नारायणसिंहका एक अंग्रेजी निबन्ध षट्खण्डागमकी चतुर्थ पुस्तकके आदिमें प्रकाशित हुआ है और पांचवी पुस्तकको आदिमें उसका हिन्दी अनुवाद प्रकाशित हुआ है । उसमे गणितके उक्त अधिकारी विद्वान्ने लिखा है___वीरसेन तत्त्वज्ञानी और धार्मिक दिव्य पुरुष थे। वे वस्तुत. गणितज्ञ नही थे । अत जो गणितशास्त्रीय सामग्री धवलाके अन्तर्गत है वह उनसे पूर्ववर्ती लेखकोकी कृति कही जा सकती है और मुख्यतया पूर्वगत टीकाकारोकी। जिनमेसे पाँचका इन्द्रनन्दिने अपने श्रुतावतारमें उल्लेख किया है। ये टीकाकार कुन्दकुन्द, शामकुन्ड, तुंबुलूर, समन्तभद्र और वप्पदेव थे, जिनमेंसे प्रथम लगभग सन् २०० के और अन्तिम सन् ६०० के लगभग हुये । अत धवलाकी अधिकाश गणितशास्त्रीय सम्बन्धी सामग्री सन् २०० से ६०० तकके बीचके समयकी मानी जा सकती है। इस प्रकार भारतवीय गणितशास्त्रके इतिहासकारोके लिए धवला प्रथमश्रेणीका महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हो जाता है क्योकि उसमें हमें भारतीय गणितशास्त्रके इतिहासके सबसे अधिक अन्धकारपूर्ण समय, अर्थात् पाचवी शताब्दीसे पूर्वकी बातें मिलती है। विशेष अध्ययनसे यह बात और भी पुष्ट हो जाती है कि धवलाकी गणितशास्त्रीय सामग्री सन् ५०० से पूर्वकी है। उदाहरणार्थ, धवलामें वणित अनेक प्रक्रियाए किसी भी अन्य ज्ञात ग्रन्थमें नहीं पायी जाती तथा इसमें कुछ ऐसी स्थूलताका आभास भी है जिसकी झलक पश्चात्के भारतीय गणितशास्त्रसे परिचित विद्वानोको सरलतासे मिल सकती है। धवलाके गणितभागमें वह परिपूर्णता और परिष्कार नही है जो आर्यभटीय और उसके पश्चात्के ग्रन्थोमें है।'
विद्वान् लेखकने धवलान्तर्गत गणितशास्त्रके सम्बन्ध में अपने लेखमें विस्तारसे प्रकाश डाला है । अत यहा उसकी विशेष चर्चा नही की है।
क्षेत्रप्रमाणका कथन करते हुए कहा है कि जगतश्रेणीके घनको लोक