________________
चूर्णिसूत्र साहित्य • १८७ शब्दनय इन तीनो शब्दोमें अर्थभेद नही मानता, क्योकि तीनोमें लिंगादि भेद नही है, परन्तु समभिरूढ नय मानता है, यही दोनोमें अन्तर है।
क्रियाके भेदसे अर्थभेद माननेवाला एवभूतनय है । जिस शब्दका जिस क्रियारूप अर्थ हो उस क्रियाके कालमें ही उस शब्दका व्यवहार करना उचित मानता है । जब इन्द्र इन्दनकिया करता हो उसी समय उसे इन्द्र कहना उचित है । यह इस 'नयका मन्तव्य है ।
इन नयोके सिवाय जैनदर्शनकी एक देन निक्षेप है। उसके चार भेद है। नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । जाति, द्रव्य, गुण, क्रिया आदिकी अपेक्षा न करके व्यवहारके लिये वस्तुकी यथेच्छ सज्ञा रखनेको नाम निक्षेप कहते है, जैसे किसी साधारण मनुष्यके द्वारा अपने पुत्रका नाम 'राजा' रख लेना नाम निक्षेप है। किसी वस्तुमें किसी अन्यकी स्थापना कर लेना स्थापना निक्षेप है। जैसे राजाके मर जाने पर उसके प्रतिनिधिके रूपमें उसकी मूर्तिको राजा मानकर स्थापित करना।
जो भविष्यमें राजा होनेवाला हो या राज्यपदसे उतर चुका हो उसको राजा कहना द्रव्यनिक्षेप है और वर्तमानमे राज्यासीनको राजा कहना भाव निक्षेप है । इस निक्षेपके चार प्रयोजन है-अप्रेकृतका निराकरण, प्रकृतका प्ररूपण, सशयका विनाश और तत्त्वार्थका व्यवहार ।
अर्थात् जब प्रत्येक वस्तुका लोकमें चार रूपोमें व्यवहार पाया जाता है तब श्रोताको यह जानना आवश्यक है कि कहाँ नामरूप वस्तुका व्यवहार अपेक्षित है और कहाँ स्थापना, द्रव्य या भाव रूप वस्तुका, जिससे वह विसवादमे न पडे । इसके लिये निक्षेप आवश्यक है।
नयो और निक्षेपोमें वही सम्बन्ध है जो ज्ञान और ज्ञेयमें होता है । नय ज्ञानरूप है तो निक्षेप ज्ञेयरूप है । आगमिक शैलीमें प्रत्येक वस्तुका विवेचन पहले नय और निक्षेपके द्वारा होता है । कपायपाहुड और चूणिसूत्रोमें भी उसी शैलीको अपनाया गया है । यहाँ चूर्णिसूत्रोंके आधारपर उसका दिग्दर्शन कराया जाता है ।
पहली गाथाके उत्तरार्ध 'पेज्ज ति पाहुडम्मि दु हवदि कसायाण पाहुड णाम ।' में इस ग्रन्थके दो नाम कहे है-पेज्जदोसपाहुड और कसायपाहुड । ये दोनो नाम किस अभिप्रायसे कहे है यह बतलाते हुए चूर्णिसूत्रकार लिखते है
१ नयोंका स्वरूप जाननेके लिये देखें-कसायपाहुड मा० १, पृ० १९९-२५८ • 'अवगयणिवारण? पयदस्स परूवणाणिमित्त च। ससयविणासण? तच्चत्यववहारण?
च' । ज० ध० प्र० का०, पृ० ३४६।।