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________________ १४२ जनसाहित्यका इतिहास प्रदेशाग्न असख्यातगणा है ॥४९९॥ उससे तेजसशरीरका प्रदेशाग्रका अनन्तगुणा है ।।५००॥ उससे कार्मणशरीरका प्रदेशाग अनन्तगुणा है ।।५०१॥ शरीरविनसोपचयारूपणाका कथन अविभागप्रतिच्छेद, वर्गणा, स्पर्धक, अन्तर, शरीर और अल्पबहुत्व इन छ अनुयोगोके द्वारा किया गया है। इनके कथनमे बतलाया है कि एक-एक औदारिकशरीरमै सब जीवोरो अनन्तगुणे अवि. भागी प्रतिच्छेद होते हैं । अनन्त अविभागी प्रतिच्छेदोकी एक वर्गणा होती है । इस प्रकार अभव्योमे अनन्तगुणी और गिद्धोके अनन्त भागप्रमाण वर्गणाएं होती है और अभन्योसे अनन्तगणी और सिद्धोके अनन्तवे भाग वर्गणाओका एक स्पर्धक होता है । इस प्रकार अभव्योमे अनन्तगुणे और सिद्धोके अनन्तवें भागप्रमाण अनन्त स्पर्धक होते है ॥५०९॥ तथा शरीरके वन्धनके कारणभूत गुणोका बुद्धिके द्वारा छेद करने पर अविभागी प्रतिच्छेद उत्पन्न होते है ॥५१२।। औदारिक शरीरके अविभागी प्रतिच्छेद सबसे कम है । उससे मागेके शेप चार शरीरोके अविभागी प्रतिच्छेद उत्तरोत्तर अनन्तगुणे होते है । इमी तरह विससोपचयका कथन करते हुए बतलाया है कि एक-एक जीवप्रदेशपर अनन्त विससोपचय उपचित होते है, जो कि सब जीवोसे अनन्त गुणे है और वे सब लोकमेंसे आकर बद्ध हुए है। इत्यादि रूपसे विस्रसोपचयका कथन पूर्ण होनेके साथ वाह्यवर्गणाका कथन समाप्त होता है। ___'इससे आगेके गन्थका नाम चूलिका है ॥१८१॥' ऐसा रवग सूत्रकारने निर्देश किया है। चूलिका जैसा कि चूलिकाका लक्षण कहा है, इसमें पहले सूचित किये गये अर्थोका विशेप रूपसे कथन किया गया है। पहले जो 'जत्थेय मरदि जीवो' आदि गाथा कही थी उसके उत्तरार्धमें कहा गया था कि 'जिस शरीरमें एक जीव उत्पन्न होता है वहाँ अनन्त जीव उत्पन्न होते है।' उसीका विशेप कथन प्रारम्भमें किया गया है । तत्पश्चात् उक्त गाथाके पूर्वार्धका, जिसमें कहा है कि 'जिस शरीरमें एक जीवका मरण होता है वहाँ अनन्तानन्त जीवोका मरण होता है', विशेप कथन किया है। पहले तेईस वर्गणाओका कथन किया है । उसमें बतलाया है कि ये वर्गणाएँ ग्रहणयोग्य है और ये वर्गणाएँ गहणयोग्य नही है। उसीका कथन करनेके लिए-बन्धनीयके चार अनुयोगद्वार ज्ञातव्य बतलाये है-वर्गणा, वर्गणानिरूपणा, प्रदेशार्थता और अल्पबहुत्व ।।७०६॥
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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