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छक्खडागम १२५
आशय यह है कि जो स्पर्श किया जाता है उसे स्पर्श कहते है, जैसे कोमलता आदि । और जिसके द्वारा स्पर्श किया जाता है उसे भी स्पर्श कहते है, जैसे स्पर्शन इन्द्रिय । इन दोनोका स्पर्श स्पर्शस्पर्श है । और वह आठ प्रकारका है।
कर्मोका कर्मोके साथ जो स्पर्श होता है वह कर्मस्पर्श है । उराके ज्ञानावरणादि आठ भेद है । धवलाटीकामें कर्मस्पर्शके भेदोका विवेचन विस्तारसे किया है।
बन्धस्पर्शके पांच भेद है-औदारिकशरीरवन्धस्पर्श, वैक्रियिकशरीरवन्धस्पर्श, आहारकशरीरवन्वस्पर्श, तेजसशरीरवन्धस्पर्श और कार्मणशरीरवन्धस्पर्श । धवलाटीकामें इन पांचोके २३ भग बतलाये है, जिनमे १४ अपुनरुक्त है, शेप नौ पुनरुक्त है।
विप, कूट (चूहेदान), यत्र, पिंजरा, कन्दक (हाथी पकडनेका यत्र) वागुरा (हिरण फंसानेकी फासा) आदि तथा इनके कर्ता और इन्हे इच्छित स्थानमें स्थापित करनेवाले, जो स्पर्शनके योग्य होगे परन्तु अभी उसे स्पर्श नही करते, उन सवको भव्यस्पर्श करते है ॥३०॥ ___ आशय यह है कि जो पर्याय भविष्यमें होने वाली होती है उसे भव्य या भावी कहते है । अत जो भविष्यमे स्पर्शपर्यायसे युक्त होगा वह भव्यस्पर्श है । उक्त यत्रादिका निर्माण पशुमोको पकडनेके लिए किया जाता है । अत चूंकि भविष्यमें वे पशुओका स्पर्श करेंगे, अत उन्हें भव्यस्पर्श कहा है। इसी तरह कारणमें कार्यका उपचार करके उनके निर्माताओको और उन्हें इच्छित स्थानमें स्थापित करनेवालोको भी भव्यस्पर्श कहा है। जो स्पर्शप्राभृतका ज्ञाता उसमे उपयुक्त है वह भावस्पर्श है ॥३२॥
इन तेरह प्रकारके स्पर्शोमेंसे प्रकृत स्पर्शअनुयोगद्वारमें 'कर्मस्पर्श' लिया गया है ॥३३॥ ___ इसमें ३३ सूत्र है। कर्मअनुयोगद्वार ___ इसमें १६ अनुयोगद्वार है-कर्मनिक्षेप, कर्मनयविभाषणता, कर्मनामविधान, कर्मद्रव्यविधान, कर्मक्षेत्रविधान, कर्मकालविधान, कर्मभावविधान, कर्मप्रत्ययविधान, कर्मस्वामित्वविधान, कर्मकर्मविधान, कर्मगतिविधान, कर्मअनन्तरविधान, कर्मसन्निकर्षविधान, कर्मपरिमाणविधान, कर्मभागाभागविधान, कर्मअल्पबहुत्व । ___कर्मनिक्षेपके दस भेद है - नामकर्म, स्थापनाकर्म, द्रव्यकर्म, प्रयोगकर्म, समवदानकर्म, अध कर्म, ईर्यापथकर्म, तप कर्म, क्रियाकर्म और भावकर्म ॥४॥ १ पटख०, पु० १३, पृ० २६-२९ । २, वही, पृ० ३१-३३ ।