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छक्खडागम १०१
कृतिका वर्णन करते हुए सूत्र ४६में कृतिके सात भेद बतलाये है-नामकृति', स्थापनाकृति, द्रव्यकृति, गणनाकृति, ग्रन्थकृति, करणकृति और भावकृति ।
सूत्र ४७में प्रश्न किया गया है कि कौन नय किन कृतियोकी इच्छा करता है ? सूत्र ४८, ४९, ५०से उत्तर देते हुए कहा है कि नैगम, सग्रह, व्यवहार सब कृतियोको स्वीकार करते है । ऋजुसूत्रनय स्थापना कृतिको स्वीकार नही करता और शब्द आदि नय नामकृति और भावकृतिको स्वीकार करते है।
सूत्र ५१से कृतिके उक्त सात भेदोका स्वरूप बतलाया है, जो इसप्रकार हैजिस जीव या अजीव किसीका 'कृति' नाम रखा जाता है वह नामकृति है । ___ काष्ठकर्म, चित्रकर्म, पोत्तकर्म ( वस्त्रसे निर्मित प्रतिमा ), लेप्यकर्म, लपनकर्म ( पर्वतको काटकर बनाई गई प्रतिमा ), शेलकर्म, गृहकर्म (जिनालयोमें बनाई गई प्रतिमा), भित्तिकर्म, दन्तकर्म और भेड ( ? ) कर्ममे अथवा अक्ष ( पासे-शतरञ्जके मोहरे ) और बराटक ( कोटी ) में यह कृति है' ऐसा आरोप करनेको स्थापनाकृति कहते हैं।
द्रव्यकृतिके दो भेद है-आगमद्रव्यकृति और नोआगमद्रव्यकृति । आगमद्रव्यकृतिके नौ अर्थाधिकार है-स्थित, जित, परिजित, वाचनोपगत, सूत्रसम, अर्थसम, ग्रन्थसम, नामसम और घोषसम । धवलाटीकामें इन सबका स्वरूप बतलाया है । जिनमेंसे कुछ इसप्रकार है
तीर्थङ्करके मुखसे निकले वीजपदोको सूत्र कहते है । उस सूत्रसे उत्पन्न होनेके कारण गणधरदेवका श्रुतज्ञान सूत्रसम है । श्रुतज्ञानी आचार्योकी सहायताके विना ही स्वयबुद्धोको जो श्रुतज्ञानावरणकर्म के क्षयोपशमसे द्वादशागका ज्ञान हो जाता है उसे अर्यसम कहते है। गणधरदेवके द्वारा रचित द्रव्यश्रुतको ग्रन्थ कहते है। उनके द्वारा बोधितबुद्धोको जो द्वादशागका ज्ञान होता है उसे ग्रन्थसम कहते है । द्वादशागके अनुयोगोके मध्यमें स्थित द्रव्यश्रुतज्ञानके भेदोको नाम कहते है, उससे उत्पन्न होनेके कारण शेष आचार्योमें स्थित श्रुतज्ञान नामसम है । ___ इस आगमके नौ अर्थाधिकारोमें जो उपयोग है उसके भेद सूत्र ५५में बतलाये है। वे है-वाचना, पृच्छना, पृतीच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षणा, स्तव, स्तुति, धर्मकथा वगैरह।
सूत्र ६६में गणनाकृतिके अनेक भेद बतलाये है-एक संख्या नोकृति है, दो सख्या न कृति है और न नोकृति । तीनसे लेकर सख्यात, असख्यात, अनन्त, राशियाँ कृति है। १ 'कदि त्ति सत्तविहा कदी-गामकदी, ठवणकदी, दव्वकदी गणणकदी गथकदी करणकदी
भानकदी चेदि ॥४६॥