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१०० · जनसाहित्यका इतिहास
४ वेदनाखण्ड एक तरहसे चतुर्थ वेदनासण्डसे पट्मण्डागमका उत्तर भाग प्रारम्भ होता है क्योकि इसके प्रारम्भमे भूतबलीने ४४ सूत्रोसे मगलाचरण किया है । और धवलाकारने उस मंगलको शेप तीनो खण्डोका मंगलाचरण कहा है । क्योति पांचवें और छठे खण्डके प्रारम्भमे कोई मगल नही पाया जाता । इमी तरह-जीवढाणके प्रथम अनुयोगद्वार गत्प्ररूपणाके आदिमें पुष्पदन्तने मंगलाचरण किया था। वही मगलाचरण दूसरे और तीसरे गण्डका भी मान लिया गया, क्योकि इन दोनो खण्डोके प्रारम्भमें कोई मगलाचरण नही पाया जाता। अत दोनो मगलोको पूर्वार्ध और उत्तरार्धका मगलाचरण कहना उचित होगा।
दूसरे, जिस महाकर्मप्रकृतिप्राभृतका उपमहार करके ये छ पण्ड रचे गये है, उसके चौवीस अनुयोगद्वारोममे क्रमानुसार ही चौथे आदि मण्डोका निर्माण हुआ है और उमीके मगलसूत्रोको वेदनावण्डके आदिमें मगलरुपमे स्थान दिया गया है। अत चतुर्य वेदनासण्डमे पटवण्डागमका उत्तर भाग प्रारम्भ होता है, यह कहना उचित ही है। __इस चतुर्थ खण्डमे महाकर्मप्रकृतिप्राभृतके चौबीस अनुयोगदारोमेरो आदिके दो अनुयोगद्वार सक्षिप्त किये गये है। एक कृति अनुयोगद्वार और दूसरा वेदना अनुयोगद्वार इन दोनोमेंसे वेदनाका प्राधान्य होनेसे खण्डको वेदना नाम दिया गया है।
१ कृतिअनुयोगद्वार'-इसके प्रारम्भमें सूत्रकार भूतवलीने णमो जिणाण' इत्यादि ४४ सूत्रोसे मगल किया है । ठीक यही मगल 'योनिप्राभृत' ग्रन्यमें गणवरवलयमत्रके रूपमें पाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि योनिप्राभृतके कर्ना
आचार्य धरसेन थे और उन्होने अपने शिष्य भूतनली पुष्पदन्तके लिये उसकी रचना की थी। इन मगलसूत्रोमे अन्तिम सूत्र 'णमोवद्धमाणबुद्धरिसिस्स ॥४४॥' है । इसकी धवलाटीकामे वीरसेन स्वामीने इसे गौतमस्वामी रचित कहा है।
इसके ४५वें सूत्रमे बतलाया है कि अग्रायणीय पूर्वको पचमवस्तुके चतुर्थप्राभृतका नाम कम्मपयडी ( कर्मप्रकृति ) है । उसके चौवीस अनुयोगद्वार कृति आदि है।
१. घटखण्डागम, पुस्तक ९ मे मुद्रित है। २ 'योनिप्राभूत वीरात ६०० धारसेन ।' वृष्टिपणि०३ 'इय पण्हसवणरइए भूयवली-पुप्फयतआलिहिए। कुसुमडी उवहट्टे विज्जयवियम्मि
अवियारे।"-अनेकान्त, वर्ष , १० ४८७ से।