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९४ जेनसाहित्यका इतिहास
४. नाना जीवोकी अपेक्षा मगविचयानुगम - भगका अर्थ है-भेद और विचयका अर्थ है विचारणा । हग अनुयोगद्वारमे यह विचार किया गया है कि मार्गणाओमे जीव नियमसे रहते है अथवा कभी रहते है और कभी नही रहते । उक्त चोदो मार्गणाओमे जीव नियममे रहते है- उनमें कभी भी जीवोका अभाव नही होता । उनके सिवाय आठ मार्गणा ऐसी है जिनमे सदा जीव नही रहते । इसीमे उन्हें मान्तर मार्गणा कहते है । उक्त चौदह मार्गणाएँ निरन्तर मार्गणा है । यह कथन नाना जीवोकी अपेक्षा किया गया है। इसमें २३ सूत्र है ।
५ द्रव्यप्रमाणानुगम - इसमे चौदह मार्गणाओमे पाये जाने वाले जीवोको संख्याका पृथक्-पृथक् कथन किया है। जीवट्ठाण के द्रव्यप्रमाणानुगममे गुणस्थानोकी अपेक्षा से जीवोकी सस्याना कथन है । यही दोनोंमें अन्तर है । इगमे १७१ मूत्र है ।
६ क्षेत्रानुगम- इसमे मार्गणास्थानोकी अपेक्षासे पूर्ववत् जीवोके क्षेत्रका कथन है । मूत्रसम्या १२४ है ।
७ स्पर्शनानुगम --- इसमें भी गुणस्थानोकी अपेक्षा न करके मार्गणाम्यानोमे जीवोके वर्तमान व अतीत काल सम्वन्धी क्षेत्रका कथन पूर्ववत् है । इसमें २७९ सून है ।
८ नाना जीवोकी अपेक्षा कालानुगम - इसमें नाना जीवोकी अपेक्षा मार्ग - गाओ जीवोके कालका कथन है । तदनुमार उक्त चौदह मार्गणाओमे जीव सर्वदा पाये जाते है । इसमें ५५ सूत्र है ।
९ नाना जीवोकी अपेक्षा अन्तरानुगम—- इसमे उक्त चौदह मार्गणाओमें नाना जीव मर्वदा पाये जानेके कारण अन्तरकालका निषेध करते हुए शेष आठ सान्तरमार्गणाओके अन्तरकालका कथन किया है । इसमे ६८ सूत्र है |
१० भागाभागानुगम नरकगतिमें नारकी सब जीवोके कितनेवे भाग है ? अनन्तवें भाग है । तीर्यञ्चगतिमें तिर्यञ्च सब जीवोके कितनेवे भाग है ? अनन्त बहुभाग है । इस प्रकार चौदह मार्गणाओमे मव जोवोके भागाभागका कथन है । इसमें ८८ सूत्र है ।
११ अल्पबहुत्वानुगम - मनुष्य मवसे थोडे है । उनमे नारकी असख्यातगुणे है । नारकियोसे देव असख्यातगुणे है । देवोसे मिद्ध अनन्तगुणे है । सिद्धोसे तिर्यञ्च अनन्तगुणे है । इस प्रकार चौदह मार्गणाओके आश्रयसे जीवोके अल्पबहुत्वका कथन इस अनुयोगद्वार है । इसमें २०५ सूत्र है |