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९० जनमाहित्यका तिहाग
गम्यमलगो उत्पन्न करता है॥१॥ प्रगमापनम गम्य- TET MEn अन्तर्गत ता अन्तगरण
| उगी जाग मि गागागा गं अन्तरालमा निगम An form TM जाना जा । फलत गम्गा प्रार : जाना
परोगिगा नीन गाग-मम्गा, गम्ममा trimurt-नागना मा गुणांक नाग पनमोपनमा
भोर गम निगम-मय गायोगा नि पिया। गा गाHिit निर्णन।
नमोनीया गंगाधगमन : Harit.in, I प्रगम गह बतागा है कि अमाद्वीप-गगग EिET गिंगियों ना निकाली और तीर होन: गागागमनमागम RATE आना है ॥११॥ और उगा पति मार्ग गांगयोग ! • Inामनगर fariritit 199TI Infrar
गा: मचा : मानी प्राना अभिगा होता तो आगामना गमाiiiii। अा . कोनि मागरपमाण र '
नाग में गमलामा दिमाग गार नारिणो भी पाना भी गानी पमा EिTTी मागप्रमाण करता है।
गा?"-१६ म गातारण हमे TT ग्याप पतगर्ने नए कहा कि वह जीव जगमगा गार पानिमा गोनि अन्तरसं गाल पर दता है और वेदनीगी बातमहतं, गाम और गायकमती गाठ मान तथा नेग कमांकी अन्तर्मुरनं प्रमाण निति करता है । TRE निपल १: सूत्र है।
९. गति-आगति लिगा-विषम अनुगार म नलिका नार भागोंगे विभाजित लिया जा सकता है। प्रथम ४ नमो नग नागे गतिगामे गम्मपन्यकी उत्पत्ति बतलाते हुए यह स्पष्ट किया है कि गम्गदर्शननी प्राप्नि पर्याप्नक मशीपपञ्चेन्द्रियको ही होती है। तथा प्रत्येक गतिम गमागमनकी उत्पत्ति के वात्य कारण बतलाये है। जैसे नरकगतिमे पूर्वजन्मका म्मग्ण, धर्मश्रवण और कप्टसहन । तिर्यञ्चगति और मनुष्यगतिमे जातिम्मरण, धर्मश्रवण और जिनविम्बदर्शन। देवगतिमे जातिस्मरण, धर्मश्रवण, जिनमहिमादर्शन और देवद्धिदर्शन इत्यादि ।
सूत्र ४४ से ७५ तक बतलाया है कि नारो गतियोमे प्रवेश करने और वहाँमे निकलनेके ममय जीवोके कौन-कौन गुणस्थान हो सकते है । जैसे, मनुष्यगतिमे कितने ही जीव मिथ्यात्वसहित जाकर मिथ्यात्वमहित ही वहाँसे निकलते