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छपरसडागम ८७
२ स्थानसमुत्कीर्तन--पहली जूलियागे जिन प्रतियोका नाथन किया है, उनका वध क्रमसे होता है या अक्रमगे होता है, इस प्रश्नका उत्तर इम दूगरी नूलिगाडाग दिया गया है । वन्धक छ है--गिध्यावृष्टि, मागादनगम्यग्दृष्टि, मम्यग्गिध्यादृष्टि, अमयतसम्यग्दृष्टि, गयतागयत और गयत । गन्तके रायतरो ६ गे लेकर तेरह तक गुणस्थानवाले जीव विवक्षित है क्योकि वे ममी सयत होते है । यद्यपि नौदहवे अयोगवली गुणस्थान वाले गी गयमी होते है किन्तु उनके एक भी कार्गका बन्ध नही होता।
१. ज्ञानावरणीयकर्मको' पांचो प्रकृतिया एक गाय बघती है और उक्त गभी बधकोके यनती है । ( निन्तु दगवे गुणग्यान ता ही बनती है, आगे नहीं बधती)
२ दर्शनावरणीयकर्म नीन बन्ध ग्यान है--नीप्रकृतिक, छहप्रतिक और चारपकृतिक । पहले और दूगर गुणरथानमे एक गाथ नौप्रतियां वधती है। तीगरे गुणस्थानम लार आठचे गुणग्याना प्रथम माग पर्यन्त जीवो नौमंगे एक माथ छ ही प्रकृनिया बचती है, तीन नहीं वरती । आगे आठवेसे दसवे गुणस्थान पर्यन्त छहमेंते भी चारका ही वन्ध एक माय होता है । इग तरह दर्शनावरणीयपार्मकी नौ प्रकतियोगसे तीन बन्धस्थान है।
: वेदनीय कर्मशी दो ही प्रतियां है-गाता और अगाता । उन दोनोमेमें एक समयमै एक ही ववती है।
८ मोहनीयको दरा बन्धम्यान है-वाई1, वासीग, गतरह, तेरह, नी, पाच, चार, नीन, दो और एक प्रकृति का वाईसमे अधिक प्रकृतिया किगी भी जीवके नही वधती। मिथ्यात्व, गोलहकपाय, स्त्रीवेद, पुरुपवेद, नपुसक्वेद इन तीनो वेदोममे एक, हास्य-रति और अगति-शोक इन दो युगलोमेसे एक युगल, भय और जुगुप्सा इन वाईम प्रकृतियोका एक माथ वन्ध मिथ्यादृष्टी जीवके होता है । इनममे मिथ्यात्वके सिवाय शेप इक्कीम प्रकृतियोका बन्ध (जिनमे नपुमकवंद नहीं लेना चाहिये ) मामादनसम्यग्दृष्टीके होता है । इनमेमे अनन्तानुवन्धी क्रोध, मान, माया, लोभके मिवाय शेप सतरह प्रकृतियोका (जिनमे स्त्रीवेद नहीं लेना चाहिये) एक माथ बन्ध तीसरे और चौथे गुणस्थानवी जीवोके होता है । उन मतरहमसे अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभके सिवाय शेप तेरह प्रकृतियोका बन्ध पाँचवे गुणस्थानवर्ती जीवोके होता है । उन तेरहमेंमे प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभको छोडकर शेष नौ प्रकृतियो का बन्ध छठेसे आठवें गुणस्थानपर्यन्त
१. पटन , पृ० ८०। • वही, पृ०८। ३ वही, पु ६, पृ ८८ ।