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________________ छान-बीन ५५१ कनड़ी भाषाका ज्ञान न होनेसे खेद है कि मैं उसे भूल गया । उन्होंने कहा था. कि 'चतुर्थ' शब्दने तो अभी अभी ही पढ़े लिखे लोगोंके व्यवहारमें पड़कर संस्कृत रूप धारण कर लिया है, परन्तु अपढ़ लोगोंमें इसका उच्चारण अमुक प्रकारसे होता है, जो संस्कृतके ' चतुर्थ' शब्दसे कुछ साम्य तो ज़रूर रखता है, परन्तु पुरानी कनड़ीमें-जिसे कि लोग भूल गये हैं-उसका अर्थ 'क्षत्री' होता है । स्वर्गीय पण्डितजीके उक्त कथनकी ओर हम दक्षिणके विद्वानोंका ध्यान आकर्षित करते हैं । शायद इससे 'चतुर्थ' नामकी सन्तोषजनक उपपत्ति बैठानेमें कुछ सहायता मिले । ___ हमारा ख़याल है कि उत्तरभारतकी जातियोंमें भी अनेक जातियाँ ऐसी होंगी जिनका मूल एक होगा और पीछे उनकी ही शाखाये स्वतन्त्र जातियाँ बन गई हैं । उदाहरणार्थ पं० बखतरामजीने अपने 'बुद्धिविलास' नामक ग्रन्थके 'श्रावकोत्पत्तिवर्णन' नामक प्रकरणमें परवार जातिकी अठसखा, चौसखा, छःसखा, दोसखा, सोरठिया, गांगज और पद्मावतीपुरवार ये सात शाखायें बतलाई हैं । १०-विक्रमादित्य और खारवेल सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ बाबू काशीप्रसादजी जायसवालने बिहार-उड़ीसा-रिसर्च सोसाइटीके ( सितम्बर-दिसम्बर १९३० ) जर्नलमें इतिहासके कई उलझे हुए प्रश्नोंको सुलझाया है और उसमें अपने अगाध पाण्डित्यका परिचय दिया है । उनमेंसे कुछ बातें ये हैं: शकारि विक्रमादित्य-अभी तक अधिकांश इतिहासज्ञोंका मत यह है कि विक्रमसंवत्का प्रवर्तक विक्रमादित्य राजा ईस्वीसन्से ५७ वर्ष पहले न होकर बहुत पीछे पाँचवीं छठी शताब्दिमें हुआ है । कोई उसे गुप्तवंशी समुद्रगुप्त बतलाता है, कोई चन्द्रगुप्त और कोई कुछ । किसी किसीके भतसे मालवगण संवत् ही पीछे विक्रमसंवत् कहलाने लगा है। अब श्रीयुत जायसवालजीने सिद्ध किया है कि गौतमीपुत्र सातकर्णि ही सुप्रसिद्ध विक्रमादित्य थे । ये आन्ध्रके राजा थे और सातकर्णि, सातवाहन और शालिवाहन, ये इस राजवंशकी उपाधियाँ थीं। गाथा सप्तशतीके की हालने जो ईस्वी सन् ६९ के लगभग या उससे कुछ पूर्व हुआ है, एक गाथामें विक्कमाइच्च (विक्रमादित्य) की दानशीलताका वर्णन किया है। इससे जान पड़ता है कि विक्रमादित्य उससे पहले हो गये हैं । इसी समयके बृहत्कथा नामक ग्रन्थसे भी उस समयसे पूर्व ही विक्रमादित्यका होना पाया जाता है।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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