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________________ ५५६ जैनसाहित्य और इतिहास गाँवके जैन पाटीलोंमें चतुर्थ और पंचम दोनों भेद हैं, वहाँके लिंगायत पाटील केवल पंचम हैं । इससे मालूम होता है कि लिंगायत सम्प्रदायके जन्मसे पहले बारहवीं शताब्दि तक सारे दाक्षिणात्य जैन पंचम ही कहलाते थे, चतुर्थ आदि भेद पीछेके हैं। दक्षिणके अधिकांश जैन ब्राह्मण भी-जो उपाध्याय कहलाते हैं -पंचम-जातिभुक्त हैं, चतुर्थादि नहीं । इससे भी जान पड़ता है कि ये भेद पीछेके हैं। ___ पहले दक्षिणके तमाम जैनोंमें परस्पर रोटी-बेटीव्यवहार होता था और वे सब 'पंचम' कहलाते थे । लिंगायत सम्प्रदायका ज़ोर होनेपर उनकी संख्या कम हो गई, इसलिए सोलहवीं शताब्दिके लगभग भट्टारकोंने अपने प्रान्तीय या प्रादेशिक संघ तोड़कर जातिगत संघ बनाये और उसी समय जुदे जुदे मठोंके अनुयायियोंको चतुर्थ, शेतवाल, बोगार अथवा कासार नाम प्राप्त हुए । साधारण तौरसे खेती और जमीन्दारी ( पाटीली ) करनेवाले चतुर्थ, काँसे पीतलके बर्तन बनानेवाले कासार या बोगार और केवल खेती और सिलाई तथा कपड़ेका व्यापार करनेवाले शेतवाल कहलाने लगे। ( हिन्दीमें जिन्हें कॅसेरे या तमेरे कहते हैं, वे ही दक्षिणमें कासार कहलाते हैं और मराठीमें खेतीका पर्यायवाची शब्द शेती या शेतकी है, जिससे कि शेतवाल शब्द बना है।) और ये सब धधे जिस मूल समुदायमें थे और जो पुराने नामसे चिपटे रहे, वे 'पंचम' ही बने रहे । इसी लिए पंचोंमें ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य इन तीनों वर्गोंके धंधे करनेवाले प्रायः समान रूपसे मिलते हैं । कासारोंमें वैष्णव भी हैं । वैष्णव 'त्वष्टा कासार' कहलाते हैं और जैन 'पंचम कासार' ।' कासार ' नाम पेशेके कारण है और 'पंचम' नाम धर्मके कारण । जिनसेन मठ ( कोल्हापुर ) के अनुयायियोंको छोड़कर और किसी मटके अनुयायी चतुर्थ नहीं कहलाते । पंचम, चतुर्थ, शेतवाल और बोगार या कासारोंमें परस्पर रोटी-व्यवहार अबतक चालू है, इससे भी इनका पूर्वकालीन एकत्व प्रकट होता है । इन सभी जातियोंमें विधवा-पुनर्विवाह जायज है। कुदले महाशयने अपनी रिपोर्टमें जो कुछ लिखा है, मेरे शब्दोंमें यह उसीका सार है । इससे दक्षिणकी उक्त चारों पाँचों जातियोंकी एकतापर बहुत कुछ प्रकाश पड़ता है; केवल 'चतुर्थ' नाम ही कुछ अँधेरे में रह जाता है। स्वर्गीय पं० कल्लापा भरभापा निटवेने एक बार मुझे इस शब्दकी उपपत्ति बतलाई थी, परन्तु
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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