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तीन महान् ग्रन्थकर्ता
स्थान-विचार मौटे तौरपर यह कहा जा सकता है कि ये तीनों आचार्य कर्नाटक प्रान्तके थे, अतएव इनका भ्रमण-क्षेत्र अधिकतर इसी प्रान्तमें रहा होगा । इनके ग्रन्थोंमें बंकापुर, वाट-ग्राम और चित्रकुट इन तीन ही स्थानोंका उल्लेख मिलता है'। इनमेंसे बंकापुर तो उस समय वनवास प्रान्तकी राजधानी था और इस समय कर्नाटकके धारवाड़ जिले में है। इसे राष्ट्रकूट अकालवर्ष (कृष्ण द्वितीय ) के सामन्त लोकादित्यके पिता बंकेयरसने अपने नामसे राजधानी बनाया था। वाट ग्राम कहाँपर था और अब वह किस नामस प्रसिद्ध है, इसका पता नहीं लगता । परन्तु वह गुर्जरार्यानुपालित था, अर्थात् अमोघवर्षके राज्यमें था और अमोघवर्षका राज्य मालवेसे लेकर दक्षिणमें कांचीपुर तक फैला हुआ था। अतएव इतने लम्बे चौड़े देशमें वह किस जगह होगा, इसका निर्णय करना कठिन है। अमोघवर्षके राज्य-कालकी श० सं० ७८८ की एक प्रशस्तिसे मालूम होता है कि गोविन्दराज ( तृतीय ) ने जिनके उत्तराधिकारी अमोघवर्ष थे केरल, मालवा, गुर्जर और चित्रकूटको जीता था और इन सब देशोंके राजा अमोघवर्षकी सेवामें रहते थे । इनमेंका चित्रकूट ही शायद वह चित्रकूट है जहाँ एलाचार्य रहते थे और जिनके पास जाकर वीरसेन स्वामीने सिद्धान्तोंका अध्ययन किया था।
मैसूर राज्यके उत्तरमें चित्तलदुर्ग जिलेका सदर मुकाम है । यह पहले होरसाल राजवंशकी राजधानी रहा है । यहाँ बहुत-सी पुरानी गुफायें है और पाँच सौ वर्ष पुराने मन्दिर हैं । मुनि शीलविजयने इसका चित्रगढ़ नामसे उल्लेख किया है । गढ़ और कूट लगभग एक ही अर्थको बतलानेवाले शब्द हैं। संभव है, एलाचार्यका १-आगत्य चित्रकूटात्ततः स भगवान्गुरोरनुज्ञानात् ।
वाटग्रामे चात्रानतेन्द्रकृतजिनगृहे स्थित्वा ॥ १७९ आदि । - श्रुता० इति श्रीवीरसेनीया टीका सूत्रार्थदर्शिनी ।
वाटग्राम पुरे श्रीमद्गुर्जरार्यानुपालिते ॥...६-जयधवला २ श्रीमति लोकादित्ये प्रध्वस्तप्रथितशत्रुसंतमसे-.....
वनवासदेशमाखिलं भुजति निष्कण्टकं सुखं सुचिरम् ।
तत्पितृनिजनामकृते ख्याते बंकापुरे पुरेष्वधिके ॥ ३१ ॥-उ० पु० ३ एपिग्राफिआ इंडिका भाग ६, पृ० १०२