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जैनसाहित्य और इतिहास
खण्डेलवाल वंशमें उत्पन्न हुए थे और उनके पिताका नाम पोमराज ( पद्मराज) श्रेष्ठी था । श्रेष्ठी शायद सेठीका संस्कृतरूप है, जो कि खण्डेलवालोंका एक गोत्र है। उन्होंने अपनेको उस समयमें धनंजय, आशाधर और वाग्भटका पद धारण करनेवाला अर्थात् उन्हींकी जोड़का विद्वान् बतलाया है । वे तक्षक नगरीके राजा राजसिंहके मंत्री थे और उनके सेवा-कार्यमें रहते हुए कुछ अवकाश निकालकर उन्होंने यह बालोपयोगी टीका लिखी थी। राजसिंहको भीमनृपात्मज अर्थात् राजा भीमसिंहका पुत्र लिखा है।
वे अपनेको दूसरा वाग्भट बतलाते हुए लिखते हैं कि राजा राजसिंह दूसरे जयसिंहदेव हैं, तक्षक नगर दूसरा अणहिल्लपुर है और मैं वादिराज दूसरा वाग्भट हूँ।
टीकाकी उत्थानिकामें उन्होंने वाग्भटको महामात्यपदभृत् लिखा है, इससे शायद वादिराज भी राजसिंहके अमात्य होंगे।
इस टीकाको उन्होंने वि० सं० १७२९ की दीपमालिकाको, गुरुवार, चित्रा नक्षत्र और वृश्चिक लग्नमें समाप्त किया था ।