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________________ कवि वादिराज इनकी अभी तक दो रचनायें उपलब्ध हुई हैं एक तो वाग्भटालंकारकी 'कविचन्द्रिका' नामकी संस्कृत टीका और एक ' ज्ञानेलोचनस्तोत्र' नामका छोटा-सा स्तोत्र । पहले ग्रन्थकी उत्थानिका और प्रशस्तिसे मालूम होता है कि ये १ इसकी एक प्रति जयपुरके पाटोदीके मन्दिर में है और दूसरी संघीजीके मन्दिरमें । दूसरी प्रतिके अन्तके कुछ पत्र नहीं हैं। २ यह स्तोत्र माणिकचन्द्र-जैनग्रन्थमालाके सिद्धान्तसारादिसंग्रहमें छप चुका है : ३ अनन्तानन्तसंसारपारगं पार्श्वमीश्वरम् । प्रमाणनयभंगाब्धि भुक्तिभूषोज्झितं स्तुवे ॥ १ वाग्भटकवीन्द्ररचितालंकारस्यावचूरिरियममला । जिनवचनगुरुकृपातो विरच्यते वादिराजेन ॥ २ धनंजयाशाधरवाग्भटानां धत्ते पदं सम्प्रति वादिराजः। खाण्डिल्यवंशोद्भवपोमसनुः जिनोक्तिपीयूषसुतृप्तगात्रः ॥ ३ ...इति मत्वा रत्नत्रयालंकृतस्त्रविद्यवित्तो विमलसोमवेष्ठिकुलभूयोमहामात्यपदभृच्छीमद्वाग्भटमहाकविस्तावदिष्टदेवतामभीष्टौति ।... संवत्सरे निधिगश्वशशाङ्कयुक्ते दीपोत्सवाख्यदिवसे सगुरौ सचित्रे | लग्नेऽलिनाम्नि च समाप गिरःप्रसादात् सद्वादिराजरचिता कविचन्द्रिकेयम् ।। १ श्रीराजसिंहनृपतिर्जयसिंह एव श्रीतक्षकाख्यनगरी अणहिल्लतुल्या । श्रीवादिराजविबुधोऽपरवाग्भटोऽयं श्रीसूत्रवृत्तिरिह नन्दतु चार्कचन्द्रम् ।। २ श्रीमद्भीमनृपालजस्य बलिनः श्रीराजसिंहस्य मे, सेवायामवकाशमाप्य विहिता टीका शिशूनां हिता। हीनाधिक्यवचे। यदत्र लिखितं तद्वै बुधैः क्षम्यताम् , गार्हस्थ्यावनिनाथसेवनधियः कः स्वस्थतामाप्नुयात् ॥ इति श्रीवाग्भटालंकारटीकायां पोमराजश्रेष्ठिसुतवादिराजविरचितायां कविचन्द्रिकायां पञ्चमः परिच्छेदः ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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