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महाकवि धनंजय
२ धनंजय निघण्टु या नाममाला और अनेकार्थ- नाममालानाममाला एक छोटा-सा दो सौ पद्योंका परन्तु बहुत ही महत्त्वपूर्ण शब्दकोश है । इसके साथ ४६ श्लोकोंकी एक अनेकार्थनाममाला भी जुड़ी हुई है । संस्कृत विद्यार्थियोंको कण्ठस्थ करने के लिए यह बहुत ही उपयोगी रचना है ।
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३ विषापहारस्तोत्र – यह ३९ इन्द्रवज्रा वृत्तोंका स्तुतिपरक काव्य है और अपनी प्रौढता, गंभीरता और अनूठी उक्तियोंके लिए प्रसिद्ध है । इसपर अनेक संस्कृत-टीकायें मिलती हैं जिनमेंसे एक पार्श्वनाथ के पुत्र नागचन्द्रकी है जिनका समय विक्रमकी सोलहवी शताब्दि है ।
कविकी प्रशंसा
प्रमाणमकलंकस्य पूज्यपादस्य लक्षणं । धनंजय कवेः काव्यं रत्नत्रयमश्चिमम् ॥
अर्थात् अकलंकदेवका प्रमाणशास्त्र, पूज्यपाद या देवनन्दिका लक्षणशास्त्र या व्याकरण और धनंजय कविका काव्य ( द्विसन्धान ) ये तीन अपश्चिम या बेजोड़ रत्न हैं ।
यह श्लोक नाममालाके अन्त में लिखा मिलता है । भले ही यह स्वयं धनंजयका न हो परन्तु इसमें जो बात कही गई है, वह बिल्कुल ठीक है ।
द्विसन्धाने निपुणतां सतां चक्रे धनंजयः ।
यया जातं फलं तस्य सतां चक्रे धनं जयः ॥
अर्थात् धनंजयने ( कविने और अर्जुनने ) द्विसन्धान में ( इस नाम के काव्य में और दोहरे निशाने लगाने में ) जो निपुणता प्राप्त की, उससे उन्हें ( कविको और अर्जुनको ) सज्जनोंके समूहमें धन और जयरूप फल प्राप्त हुआ ।
यह पद्य काव्यमीमांसा आदि ग्रन्थों के कर्त्ता महाकवि राजशेखरका कहा हुआ है। अनेकभेदसंघानाः खनंता हृदये मुहुः ।
वाणा धनंजयोन्मुक्ताः कर्णस्येव प्रियाः कथम् ॥
१ कवेर्धनंजयस्येयं सत्कवीनां शिरोमणिः ।
प्रमाणं नाममालेति श्लोकानां च शतद्वयम् ॥
२ देखो, जैनहितैषी भाग १२, अंक १, पृ० ८७–९०
३ राजशेखरने प्राचीन कवियोंकी प्रशंसामें जो पद्य लिखे थे, वे सूक्तिमुक्तावली और सुभाषितहारावली में संगृहीत हैं। उनमें से यह एक 1
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