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जिनशतकके टीकाकर्ता कौन हैं ?
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वसुनन्दि नामके अनेक आचार्य हो गये हैं परन्तु ये वसुनन्दि हमें वही मालूम होते हैं जिन्होंने स्वामी समन्तभद्रकी एक दूसरी कृति देवागमकी वृत्ति भी लिखी है । क्योंकि एक तो दोनोंकी रचनाशैली एक-सी है और दूसर जिस तरह जिनशतक वृत्तिके कतीने अपनी जड़ता प्रारंभके छठे श्लोकमें प्रकट की है, उसी तरह देवागमवृत्तिके अन्तमें भी उन्होंने लिखा है-" श्रीमत्समन्तभद्राचार्यस्य... देवागमाख्यायाः कृतेः संक्षेपभूतं विवरणं कृतं श्रुतविस्मरणशीलेन वसुनन्दिना जडमतिनाऽत्मोपकाराय ।” अर्थात् देवागमका यह संक्षिप्त विवरण जडमति
और श्रुतविस्मरणशील वसुनन्दिने अपने उपकारके लिए बनाया। इसके सिवाय जिनशतकवृत्तिमें जिस तरह समन्तभद्रके सद्बोधकी बन्दना की गई है उसी तरह देवागमवृत्तिमें समन्तभद्रके मतकी।- वन्दे तद्वतकालदोषममलं सामन्तभद्रं मतम् ।” यहाँ सब्दोध और मत प्रायः एकार्थवाची हैं।
प्रतिष्ठासारसंग्रह, उपासकाचार, और मूलाचारकी आचारवृत्ति ये तीन ग्रन्थ और भी वसुनन्दिकृत उपलब्ध हैं । मालूम नहीं, इनके कर्ता भी ये ही हैं अथवा इनसे भिन्न कोई दूसरे । पं० जुगलकिशोरजी मुख्तारने इनका समय आचार्य
अमितगतिके बाद और पं० आशाधरसे पहले विक्रमकी बारहवीं सदी निश्चित किया है । क्योंकि आशाधरने पहले दो ग्रन्थोंके उद्धरण अपने सागारधर्मामृत
और जिनयज्ञकल्पमें दिये हैं और वसुनन्दिने अपनी आचारवृत्तिमें अमितगतिके उपासकाचारके पाँच श्लोक 'उक्तं च ' रूपसे दिये हैं।
परन्तु अमितगतिने भी भगवती आराधनाके अन्तमें आराधनाकी स्तुति करते हुए एक वसुनन्दियोगीका उल्लेख किया है
या निःशेषपरिग्रहेभदलने दुर्वारसिंहायते, या कुज्ञानतमोघटाविघटने चंद्राशुरोचीयते। या चिन्तामणिरेव चिन्तितफलैः संयोजयंती जनान् ,
सा वः श्रीवसुनन्दियोगिमहिता पायात्सदाराधना ॥ या तो ये वसुनन्दि योगी इन वसुनन्दिसे पूर्ववर्ती कोई दूसरे ही हैं और या फिर अमितगति और वसुनन्दि समकालीन हैं, जिससे वे एक दूसरेका उल्लेख कर सके हैं । यदि समकालीन हैं, तो फिर वसुनन्दिको विक्रमकी बारहवीं नहीं किन्तु म्यारहवीं शताब्दिका मानना चाहिए ।
१ देखो, जैनहितैषी भाग १२ पृ० १९२-९३