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________________ आचार्य अमृतचन्द्र आध्यात्मिक विद्वानोंमें भगवकुन्दकुन्दके बाद यदि किसीका नाम लिया जा सकता है तो वे आचार्य अमृतचन्द्र हैं । दुःखकी बात है कि इतने महान् आचार्यके विषयमें इसके सिवाय हम कुछ भी नहीं जानते कि उनके बनाये हुए अमुक अमुक ग्रन्थ हैं। उनकी गुरु-शिष्यपरम्परासे और समयादिसे हम सर्वथा अनभिज्ञ हैं। अपने दो ग्रन्थों के अन्तमें वे कहते हैं कि तरह तरहके वर्षों से पद बन गये, पदोंसे वाक्य बन गये और वाक्योंसे यह पवित्र शास्त्र बन गया । मैंने कुछ भी नहीं किया। अन्य ग्रन्थोंमें भी उन्होंने अपना यही निर्लिप्त भाव प्रकट किया है । इससे अधिक परिचय देनेकी उन्होंने आवश्यकता ही नहीं समझी । उनके बनाये हुए पाँच ग्रन्थ उपलब्ध हैं और वे पाँचों ही संस्कृतमें हैं१ पुरुषार्थसिद्धयुपाय, २ तत्त्वार्थसार, ३ समयसार-टीका, ४ प्रवचनसार टीका और ५ पंचास्तिकाय-टीका। पहला श्रावकाचार है जो उपलब्ध तमाम श्रावकाचारोंसे निराला और अपने ढंगका अद्वितीय है । दूसरा उमास्वातिके तत्त्वार्थसूत्रका अतिशय स्पष्ट, मुसम्बद्ध और कुछ पल्लवित पद्यानुवाद है । शेष तीन भगवत्कुन्दकुन्दके प्रसिद्ध प्राकृत ग्रन्थोंकी संस्कृत टीकायें हैं जिनकी रचनाशैली बहुत ही प्रौढ़ और मर्मस्पर्शिनी है। __ पं० आशाधरने अपने अनगारधर्मामृतकी भव्यकुमुदचन्द्रिकाटीकामें अमृतचन्द्रको दो स्थानों में ' ठक्कुर' नामसे अभिहित किया है १ एतदनुसारेणैव ठक्कुरोपीदमपाठीत्-लोके शास्त्राभासे समयाभासे च देवताभासे आदि ।—पृ० १६० २ एतच्च विस्तरेण ठक्कुरामृतचन्द्रसूरिविरचितसमयसारटीकायां दृष्टव्यम् । -~-पृ० ५८८ १ वर्णेः कृतानि चित्रैः पदानि तु पदैः कृतानि वाक्यानि । वाक्यैः कृतं पवित्र शास्त्रमिदं न पुनरस्माभिः ॥-पु० सि०
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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